सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है कि यदि किसी सार्वजनिक कर्मचारी को किसी आपराधिक मामले में बरी कर दिया जाता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही नहीं हो सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि आपराधिक मुकदमों और अनुशासनात्मक जांचों के लिए प्रमाण की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं, जिससे यह संभव है कि किसी व्यक्ति के बरी होने के बावजूद विभागीय जांच जारी रखी जा सकती है।
आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष को आरोपी का अपराध संदेह से परे साबित करना पड़ता है। वहीं, विभागीय जांच में 'संभावनाओं के संतुलन' (preponderance of probabilities) के सिद्धांत का पालन किया जाता है, जो अपेक्षाकृत कम सख्त मानक है। इस अंतर के कारण, आपराधिक न्यायालय में बरी होना किसी बर्खास्त कर्मचारी की स्वतः बहाली की गारंटी नहीं देता।
"विभागीय कार्यवाही एक आपराधिक मुकदमा नहीं है। इसमें प्रमाण की आवश्यकता संभावनाओं के संतुलन के आधार पर होती है, न कि संदेह से परे प्रमाण की।" – सुप्रीम कोर्ट
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मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) के एक सहायक अभियंता (सिविल) से संबंधित था, जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी ठहराया गया था। हालांकि, बाद में सबूतों की अपर्याप्तता के आधार पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।
इसके बावजूद, AAI ने उनके खिलाफ नई विभागीय जांच शुरू की, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस बर्खास्तगी को निरस्त कर दिया, जिसके बाद AAI ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
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सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी की बर्खास्तगी को सही ठहराया और स्पष्ट किया कि आपराधिक मामले में बरी होने से नियोक्ता द्वारा विभागीय जांच करने पर रोक नहीं लगती। जस्टिस जे. के. महेश्वरी और संदीप मेहता की पीठ ने कहा:
"हाईकोर्ट ने आपराधिक मुकदमों और विभागीय जांचों में प्रमाण की अलग-अलग आवश्यकताओं को समान मानकर गंभीर गलती की। आपराधिक मामलों में संदेह से परे प्रमाण आवश्यक होते हैं, जबकि विभागीय जांच संभावनाओं के संतुलन के आधार पर की जाती है।"
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुशासनात्मक अधिकारियों को सजा तय करने के लिए विस्तृत कारण बताने की आवश्यकता नहीं होती, जब तक कि वे जांच अधिकारी के निष्कर्षों पर भरोसा कर रहे हों।
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अलग प्रमाण मानक: आपराधिक मामले में बरी होना विभागीय जांच में दोषमुक्ति की गारंटी नहीं देता।
स्वतः बहाली नहीं: यदि कोई कर्मचारी विभागीय जांच के आधार पर बर्खास्त किया गया है, तो उसे सिर्फ आपराधिक अदालत में बरी होने के आधार पर पुनः नियुक्ति नहीं मिलेगी।
न्यायिक समीक्षा सीमित: अदालतें केवल तभी विभागीय जांच में हस्तक्षेप कर सकती हैं जब स्पष्ट रूप से कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ हो।
नियोक्ता का अधिकार: यदि आपराधिक अदालत में पर्याप्त सबूत नहीं पाए जाते, फिर भी विभागीय जांच में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर कार्रवाई की जा सकती है।