सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि यदि कोई गवाह एफआईआर में केवल कुछ आरोपियों का नाम लेता है और अन्य को छोड़ देता है, तो यह एक अप्राकृतिक आचरण है और शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न करता है। यह तथ्य भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 11 के तहत प्रासंगिक बन जाता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला उत्तर प्रदेश राज्य बनाम रघुवीर सिंह से संबंधित है, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
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घटना 28 अगस्त 2004 की है जब मृतक के पिता ने थाना धौलाना, हापुड़, गाजियाबाद में एफआईआर दर्ज कराई थी। इसमें उन्होंने मुख्य अभियुक्त रघुवीर सिंह के अलावा दो अन्य अज्ञात लोगों पर उनके पुत्र राजकुमार की हत्या करने का आरोप लगाया था।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा:
"यदि शिकायतकर्ता स्वयं प्रत्यक्षदर्शी है और उसने तीन लोगों को अपराध करते हुए देखा, तो उसने एफआईआर में केवल एक आरोपी का ही नाम क्यों दर्ज कराया? यह महत्वपूर्ण तथ्य है और इसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 11 के तहत प्रासंगिक माना जाएगा।"
अदालत ने राम कुमार पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य (AIR 1975 SC 1026) के मामले को उद्धृत किया, जिसमें कहा गया था:
"एफआईआर एक पूर्ववर्ती बयान है, जिसका उपयोग केवल शिकायतकर्ता को पुष्ट करने या उसका खंडन करने के लिए किया जा सकता है। यदि मृतक के पिता ने अपनी पुत्रियों से घटना की पूरी जानकारी प्राप्त की थी, तो वह एफआईआर में सभी महत्वपूर्ण तथ्य अवश्य ही लिखते। इस तरह की महत्वपूर्ण बातों की अनुपस्थिति संदेह उत्पन्न करती है और साक्ष्य अधिनियम की धारा 11 के तहत प्रासंगिक बनती है।"
हाईकोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए रघुवीर सिंह को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष तीन मुख्य प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही को साबित करने में असफल रहा।
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हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि एफआईआर 14 घंटे की देरी से दर्ज की गई, और उसमें केवल एक आरोपी का नाम था, जबकि शिकायतकर्ता ने गवाही में तीन लोगों को हमलावर बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
"यदि तीन प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही संदेहास्पद हो जाती है, तो अभियुक्त के खिलाफ कोई अन्य ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहीं रहता।"
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जब तक अभियोजन यह साबित नहीं कर पाता कि एफआईआर में सभी आरोपियों का नाम क्यों नहीं लिया गया, तब तक अभियुक्त को दोषी ठहराना उचित नहीं होगा।
मामला: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम रघुवीर सिंह