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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महाकुंभ में लाउडस्पीकर के खिलाफ याचिका खारिज की, कहा-पर्याप्त सबूत नहीं

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महाकुंभ 2025 में लाउडस्पीकर के उपयोग के खिलाफ एक जनहित याचिका (PIL) खारिज कर दी, क्योंकि याचिकाकर्ता ने शोर प्रदूषण के दावे को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं दिए। पूरी जानकारी यहां पढ़ें।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महाकुंभ में लाउडस्पीकर के खिलाफ याचिका खारिज की, कहा-पर्याप्त सबूत नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेला में लाउडस्पीकर और एलसीडी स्क्रीन के उपयोग के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि इन उपकरणों के कारण शोर प्रदूषण हो रहा है, जिससे उनके ध्यान और आध्यात्मिक गतिविधियों में बाधा आ रही है। हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिका में शोर सीमा से अधिक प्रदूषण को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं|

मामले की पृष्ठभूमि

यह जनहित याचिका (PIL नंबर 265 of 2025) ब्रह्मचारी दयानंद और एक अन्य याचिकाकर्ता ने दायर की थी, जो उत्तराखंड के निवासी हैं और महाकुंभ के दौरान अस्थायी रूप से प्रयागराज के सेक्टर 18, मुक्ति मार्ग में रुके हुए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि आसपास के कैंपों में पब्लिक एड्रेस सिस्टम और एलसीडी स्क्रीन का उपयोग किया जा रहा है, जिससे अत्यधिक शोर हो रहा है और उनके ध्यान में बाधा आ रही है।

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याचिकाकर्ताओं ने अदालत से लाउडस्पीकर और एम्पलीफायर के उपयोग पर रोक लगाने का अनुरोध किया। उन्होंने शोर प्रदूषण से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया और अपने कैंप के पास लगे लाउडस्पीकर की तस्वीरें पेश कीं।

मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की पीठ ने याचिका की जांच की और पाया कि इसमें ठोस सबूतों की कमी है। अदालत ने लाउडस्पीकर की तस्वीरों को स्वीकार किया, लेकिन यह भी कहा कि ये उपकरण अस्थायी सड़कों पर लगाए गए थे, जो कुंभ मेला के लिए बनाई गई थीं, और संभवतः घोषणाओं के लिए उपयोग किए जा रहे थे।

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महत्वपूर्ण बात यह है कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि शोर का स्तर भारत के शोर प्रदूषण कानूनों के तहत तय सीमा से अधिक है। अदालत ने जोर देकर कहा कि केवल लाउडस्पीकर लगाना कानूनी उल्लंघन नहीं है।

"याचिका का दायरा एक अकादमिक अभ्यास पर आधारित है, जो माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और लाउडस्पीकर की कुछ तस्वीरों पर आधारित है। ऐसी संक्षिप्त याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
— इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश

पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि दावे अनुमानित हैं और मापने योग्य सबूतों से समर्थित नहीं हैं।