इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को Alt News के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। यह मामला उनके द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' (पहले ट्विटर) पर धार्मिक नेता यति नरसिंहानंद के कथित आपत्तिजनक भाषणों से जुड़ी वीडियो साझा करने को लेकर है।
ज़ुबैर की याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति डॉ. योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने इस मामले में निष्पक्ष जांच की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। हालांकि, कोर्ट ने उन्हें राहत देते हुए जांच के दौरान गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया।
"मामले में निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है," कोर्ट ने आदेश में कहा।
हाईकोर्ट ने ज़ुबैर को देश छोड़ने पर भी रोक लगाई है जब तक कि जांच पूरी नहीं हो जाती।
यह FIR अक्टूबर 2024 में गाज़ियाबाद पुलिस द्वारा यति नरसिंहानंद की सहयोगी उदीता त्यागी की शिकायत पर दर्ज की गई थी। इसमें ज़ुबैर पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत आरोप लगाए गए हैं, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य से संबंधित है।
ज़ुबैर ने कोर्ट में कहा कि उनका उद्देश्य हिंसा भड़काना नहीं था, बल्कि नरसिंहानंद के भड़काऊ बयानों को उजागर कर प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग करना था। उन्होंने कहा कि यह उनके फैक्ट-चेकिंग पेशे का हिस्सा था।
"मेरे पोस्ट का मकसद नफरत फैलाने वाले भाषणों को उजागर करना और कार्रवाई की मांग करना था। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है," ज़ुबैर ने कोर्ट में कहा।
वहीं, शिकायतकर्ता ने ज़ुबैर पर पुराने वीडियो क्लिप्स को साझा कर जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को भड़काने का आरोप लगाया। उनका कहना है कि ज़ुबैर की पोस्ट के बाद गाज़ियाबाद स्थित दासना देवी मंदिर के पास हिंसक प्रदर्शन हुए।
सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने FIR का बचाव करते हुए कहा कि ज़ुबैर ने चुनिंदा वीडियो क्लिप्स साझा कर उकसाने वाला नैरेटिव तैयार किया। उन्होंने ज़ुबैर की पोस्ट की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए और आरोप लगाया कि इससे हालात और बिगड़े।
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"पोस्ट अधूरी जानकारी पर आधारित थीं और उन्होंने राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डाला," राज्य सरकार की ओर से कहा गया।
ज़ुबैर ने जवाब में कहा कि उनकी पोस्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यात्मक सामग्री पर आधारित थीं, जिन्हें पहले से कई मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया यूज़र्स ने साझा किया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके कार्य किसी भी आपराधिक अपराध की श्रेणी में नहीं आते।
"यह पेशेवर जिम्मेदारी थी। मैंने कुछ नहीं गढ़ा और ना ही हिंसा भड़काई। वही सामग्री अन्य लोगों ने भी साझा की थी," ज़ुबैर ने स्पष्ट किया।
हाईकोर्ट द्वारा FIR रद्द करने से इनकार और निष्पक्ष जांच के निर्देश के बाद अब इस मामले में कानूनी प्रक्रिया न्यायिक निगरानी में आगे बढ़ेगी।