बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट के मामले में सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की एक अंतिम वर्ष की छात्रा के निलंबन में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। कॉलेज ने छात्रा को अनुशासनात्मक जांच लंबित रहने तक शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक गतिविधियों से प्रतिबंधित कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई दंडात्मक नहीं, बल्कि प्रशासनिक प्रकृति की है।
यह मामला न्यायमूर्ति रोहित बी. जोशी की अवकाश पीठ के समक्ष 14 मई 2025 को पेश हुआ। याचिकाकर्ता छात्रा का नाम एक स्वतंत्र पत्रकार रेहज के साथ जोड़ा गया था, जो केरल स्थित डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़ा है। रेहज को 7 मई को सरकार के सैन्य अभियान की आलोचना करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया था। अगले दिन, छात्रा से पूछताछ की गई और उसका मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया, हालांकि उसे गिरफ्तार नहीं किया गया।
इसके बाद सिम्बायोसिस लॉ स्कूल ने 13 मई 2025 को छात्रा को निलंबित करते हुए एक आदेश जारी किया। यह आदेश रेहज के खिलाफ दर्ज एफआईआर के आधार पर जारी किया गया था। छात्रा ने इस निलंबन के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में रिट याचिका (क्रमांक 2654/2025) दाखिल की और तर्क दिया कि उसे बिना उचित जांच के निलंबित कर देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। उसने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय की 2023 की आचार संहिता के तहत ऐसा कदम उठाने से पहले पूरी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए थी।
याचिका में यह भी कहा गया कि किसी अज्ञात सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर, जिसमें उसे ‘रेहज द्वारा कट्टरपंथी बनाए जाने’ का आरोप था, उसे निशाना बनाना अनुचित है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “संस्थान ने याचिकाकर्ता को निलंबित करने और उसे परीक्षा में बैठने से रोकने का निर्णय लिया है, जो कि अनुशासनात्मक जांच पूरी होने तक लागू रहेगा।”
सुनवाई के दौरान सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की ओर से यह आश्वासन दिया गया कि अनुशासनात्मक जांच 25 मई 2025 तक पूरी कर ली जाएगी, और छात्रा की अंतिम परीक्षा 5 जून 2025 को निर्धारित है। न्यायालय ने यह मानते हुए कि मामले की जांच प्रारंभिक चरण में है, फिलहाल हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति जोशी ने कहा, “मेरे विचार में सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की यह कार्रवाई दंडात्मक नहीं बल्कि प्रशासनिक प्रकृति की है, विशेष रूप से इस शर्त को देखते हुए कि यदि छात्रा अनुशासनात्मक जांच में निर्दोष पाई जाती है, तो उसके लिए विशेष परीक्षा आयोजित की जाएगी। इससे दोनों पक्षों के हितों का संतुलन बना रहेगा।”
अदालत ने निर्देश दिया कि जांच प्रक्रिया 25 मई तक पूरी कर याचिकाकर्ता को परिणाम की जानकारी दी जाए और छात्रा पूरी जांच प्रक्रिया में सहयोग करे।
कोर्ट ने आगे कहा, “यदि याचिकाकर्ता अनुशासनात्मक जांच में दोषमुक्त पाई जाती है, तो संस्था उसके लिए उन विषयों की विशेष परीक्षा आयोजित करेगी, जिनमें वह निलंबन के कारण उपस्थित नहीं हो सकी, ताकि उसकी शिक्षा में कोई क्षति न हो।”.
यह मामला दर्शाता है कि शैक्षणिक संस्थान अनुशासन बनाए रखने के साथ-साथ छात्रों के अधिकारों की रक्षा को लेकर भी सजग हैं। अदालत का यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि फिलहाल उठाया गया कदम किसी सजा के रूप में नहीं बल्कि एहतियातन प्रशासनिक कार्रवाई के रूप में देखा जाना चाहिए।
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एस. कुलकर्णी, राज्य की ओर से सहायक सरकारी वकील एस.एस. जाचक और सिम्बायोसिस लॉ स्कूल की ओर से अधिवक्ता कुलदीप महाले उपस्थित हुए।