दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की सक्षम प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत मांगी गई जानकारी आवेदक द्वारा अनुरोधित माध्यम—जैसे ई‑मेल और पेनड्राइव—में ही उपलब्ध कराई जाए, साथ ही डेटा सुरक्षा के पुख्ते इंतज़ाम भी किए जाएँ। यह कदम RTI व्यवस्था को तकनीकी प्रगति के अनुरूप बनाते हुए उपयोगकर्ताओं की सुविधा तथा पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने यह आदेश आदित्य चौहान व अन्य बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया व अन्य शीर्षक वाली जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए पारित किया। याचिका में कहा गया था कि यद्यपि RTI अधिनियम इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सूचना देने की अनुमति देता है, फिर भी सार्वजनिक सूचना अधिकारी (PIO) प्रायः ई‑मेल और पेनड्राइव जैसे सामान्य डिजिटल साधनों का प्रयोग नहीं करते।
“हम आश्वस्त हैं कि सामान्यतः RTI अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना उसी माध्यम में दी जानी चाहिए जिसमें वह मांगी गई हो। किंतु यह धारा 4(4) और 7(9) के अधीन दो शर्तों पर निर्भर है।”
— दिल्ली हाईकोर्ट
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि RTI नियम, 2012 में ऐसा स्पष्ट ढांचा नहीं है जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सूचना उपलब्ध कराने को सुनिश्चित करे।
सरकार की ओर से पेश वकील ने धारा 2(j) का उल्लेख किया, जो “सूचना का अधिकार” को परिभाषित करते हुए फ्लॉपी, डिस्क, वीडियो कैसेट के साथ‑साथ “किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम” में संग्रहीत जानकारी प्राप्त करने के अधिकार को भी शामिल करता है।
पीठ ने धारा 4(4) पर ध्यान आकर्षित किया, जो कहती है कि सूचना का प्रसार सबसे प्रभावी संचार‑विधि को ध्यान में रखकर होना चाहिए। इसी तरह, धारा 7(9) के अनुसार सूचना सामान्यतः उसी रूप में दी जानी चाहिए जिसमें वह मांगी गई हो, बशर्ते इससे सार्वजनिक प्राधिकरण के संसाधन अत्यधिक न भटकें या अभिलेख की सुरक्षा को क्षति न पहुँचे।
“RTI नियम उस स्थिति को संबोधित नहीं करते जहाँ सूचना विशेष माध्यम, जैसे ई‑मेल या पेनड्राइव, में मांगी गई हो।”
— दिल्ली हाईकोर्ट
इन सभी प्रावधानों का संयुक्त अध्ययन करने के बाद न्यायालय ने माना कि RTI के तहत मांगी गई सूचना आधुनिक डिजिटल प्रारूपों में उपलब्ध कराई जानी चाहिए, बशर्ते उचित सुरक्षा उपाय लागू हों। accordingly, कोर्ट ने केंद्र सरकार की सक्षम प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह तीन माह के भीतर दिशानिर्देश जारी करे या नियम बनाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सूचना आवेदक द्वारा चुने गए माध्यम में ही सुरक्षित रूप से प्रदान की जाए।
“एक समुचित ढांचा तैयार किया जाए, जिससे सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आवेदक को उसके अधिकार का वास्तविक लाभ मिल सके।”
— दिल्ली हाईकोर्ट
शीर्षक: आदित्य चौहान एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य