सुप्रीम कोर्ट ने ए. करुणानिथि (ग्राम प्रशासनिक अधिकारी - VAO) और पी. करुणानिथि (विलेज असिस्टेंट) की अपीलों पर फैसला सुनाया है। दोनों को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दोषी ठहराया गया था।
मामला वी. रंगासामी की शिकायत से शुरू हुआ था, जिन्होंने सरकारी सेवा के लिए समुदाय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। 9 नवंबर 2004 को ए. करुणानिथि ने कथित रूप से ₹500 की रिश्वत मांगी। 27 नवंबर 2004 को यह मांग दोहराई गई। 3 दिसंबर 2004 को trap की कार्यवाही की गई, जिसमें पी. करुणानिथि ने वीएओ के निर्देश पर चिन्हित नोट लिए। फिनॉल्फ्थेलिन टेस्ट में रिश्वत की पुष्टि हुई।
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ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी ठहराया था - ए. करुणानिथि को 3 साल और पी. करुणानिथि को 1.5 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी, साथ ही जुर्माना लगाया गया। 2018 में हाईकोर्ट ने इन सज़ाओं को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील ने ए. करुणानिथि की उम्र (68 वर्ष) और मामूली राशि का हवाला देते हुए सजा में कमी की मांग की, वहीं पी. करुणानिथि की बरी होने की दलील दी, क्योंकि उनके खिलाफ रिश्वत मांगने का कोई सबूत नहीं था।
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जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कहा:
"गैर-कानूनी पारितोषिक की मांग और स्वीकृति, दोषसिद्धि के लिए अनिवार्य शर्त है। ए-2 द्वारा रिश्वत मांगने का कोई सबूत नहीं है।"
इसके अनुसार, पी. करुणानिथि की दोषसिद्धि रद्द कर दी गई। कोर्ट ने ए. करुणानिथि की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए उनकी सजा घटाकर प्रत्येक अपराध के लिए न्यूनतम एक वर्ष कर दी, यह देखते हुए कि मामला 2004 से लंबित है और राशि भी मामूली थी।
केस शीर्षक: ए. करुणानिधि और पी. करुणानिधि बनाम पुलिस निरीक्षक द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया राज्य
मामला संख्या:- विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक अपील) संख्या 9964 और 7442, 2019