बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि जब किसी पक्ष को अदालत द्वारा दस्तावेज़ को निष्पादित करने या पंजीकृत कराने से कानूनी रूप से रोका गया हो, तो उस अवधि को पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत समयसीमा की गणना में शामिल नहीं किया जा सकता। यह ऐतिहासिक निर्णय Grand Centrum Realty LLP बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले में आया, जिसमें न्यायालय ने 2018 में निष्पादित दो विक्रय अनुबंधों के पंजीकरण का निर्देश दिया जिन्हें समयसीमा पार होने के कारण उप-पंजीयक ने अस्वीकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते देरे और न्यायमूर्ति डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ Grand Centrum Realty LLP द्वारा अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता फर्म ने 6 मार्च 2018 को एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट विद्यार्थी सहाय्यक मंडळ के साथ दो विक्रय अनुबंध किए थे। ये अनुबंध वैध रूप से निष्पादित हुए थे, लेकिन लंबित मुकदमेबाजी और न्यायालय के स्थगन आदेश के कारण पंजीकरण के लिए प्रस्तुत नहीं किए जा सके।
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“26 अप्रैल 2018 से 8 मई 2025 की अवधि को पंजीकरण अधिनियम के तहत समयसीमा की गणना से बाहर रखा जाना चाहिए।” — बॉम्बे हाईकोर्ट
याचिकाकर्ता दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं कर सका क्योंकि उच्च न्यायालय ने 26 अप्रैल 2018 को एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें ट्रस्ट को विक्रय विलेख निष्पादित करने से रोका गया था। यह आदेश 8 मई 2025 तक प्रभावी रहा जब याचिकाएं खारिज कर दी गईं। इसके तुरंत बाद, 16 जून 2025 को दस्तावेज़ पंजीकरण हेतु प्रस्तुत किए गए, परंतु उप-पंजीयक ने पंजीकरण अधिनियम की धारा 23 का हवाला देते हुए उन्हें अस्वीकार कर दिया, जो निष्पादन की तिथि से चार माह के भीतर दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की बात कहती है।
“पंजीकरण अधिनियम के तहत किसी दस्तावेज़ के पंजीकरण का प्राप्त कानूनी अधिकार इसलिए समाप्त नहीं हो सकता क्योंकि देरी पार्टी के नियंत्रण से बाहर कारणों से हुई है।” — बॉम्बे हाईकोर्ट
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि देरी जानबूझकर नहीं थी और ना ही लापरवाही से हुई, बल्कि न्यायालय के आदेश के कारण वह मजबूर था। उच्च न्यायालय ने इस तर्क से सहमति जताई और Nestor Builders and Developers Pvt. Ltd. बनाम महाराष्ट्र राज्य के पूर्व निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि देरी वास्तविक और पार्टी के नियंत्रण से बाहर हो, तो पंजीकरण की अनुमति दी जा सकती है।
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न्यायालय ने कहा कि प्रतिबंध की अवधि को छोड़कर, दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा उपयोग की गई कुल अवधि चार माह से अधिक नहीं थी। अतः उप-पंजीयक द्वारा किया गया इनकार विधिक दृष्टि से अनुचित पाया गया।
“याचिकाकर्ता की ओर से की गई वास्तविक देरी जो जानबूझकर या लापरवाही से नहीं हुई थी, उसे दस्तावेज़ों के पंजीकरण की अनुमति देने में बाहर रखा जाना आवश्यक है।” — बॉम्बे हाईकोर्ट
इस प्रकार, न्यायालय ने उप-पंजीयक के आदेशों को रद्द कर दिया और दिनांक 6 मार्च 2018 के दोनों विक्रय अनुबंधों को पंजीकरण हेतु स्वीकार करने का निर्देश दिया।
केस का शीर्षक: ग्रैंड सेंट्रम रियल्टी एलएलपी बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य [रिट याचिका संख्या 8411 और 8412/2025]