मानवाधिकार संगठन सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया है, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों द्वारा बनाए गए एंटी-कन्वर्जन कानूनों के कथित दुरुपयोग और हथियार की तरह इस्तेमाल पर अंतरिम राहत की मांग की गई है।
यह मामला मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ के समक्ष आया, जो उन याचिकाओं की एक श्रृंखला की सुनवाई कर रही है, जिनमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक जैसे राज्यों में पारित धार्मिक रूपांतरण कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
सीजेपी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह ने अदालत को बताया कि संगठन ने एक इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन (IA) दायर की है, जिसमें अदालत से त्वरित हस्तक्षेप की मांग की गई है। उन्होंने इन कानूनों के बार-बार दुरुपयोग का हवाला देते हुए अदालत से इसमें नोटिस जारी करने का अनुरोध किया।
“IA दायर की गई है जिसमें अंतरिम राहत की मांग की गई है। अब यह इस बात के आलोक में है कि कई घटनाएं हुई हैं, ये कानून बार-बार इस्तेमाल और हथियार की तरह उपयोग किए जा रहे हैं – हम चाहते हैं कि इस IA पर नोटिस जारी किया जाए, माई लॉर्ड्स,”
– वरिष्ठ अधिवक्ता सी.यू. सिंह सुप्रीम कोर्ट में
हालांकि, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस दावे का विरोध किया और किसी भी घटना से इनकार किया।
“माई लॉर्ड्स, ऐसी कोई घटनाएं नहीं हैं,”
– सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की प्रतिक्रिया
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर विभिन्न आवेदनों की समीक्षा करें और यह बताएं कि किन आवेदनों पर केंद्र सरकार को कोई आपत्ति नहीं है, और जहां आपत्ति है वहां अपना जवाब दाखिल करें।
सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया:
“कई आवेदन दायर किए गए हैं। यह गैर-आवेदकों के लिए खुला रहेगा कि वे इन आवेदनों पर अपना उत्तर दाखिल करें, भले ही नोटिस जारी न किया गया हो। हमने इन निर्देशों को इसलिए जारी किया है ताकि दलीलों की प्रक्रिया को शीघ्र पूरा किया जा सके।”
– सुप्रीम कोर्ट की पीठ
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मुख्य न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला जल्द ही गैर-सामान्य कार्यदिवस पर सूचीबद्ध किया जाएगा, ताकि इस पर केंद्रित और गहन सुनवाई हो सके।
अदालत के समक्ष दायर याचिकाएं मुख्य रूप से उन राज्य कानूनों की वैधता को चुनौती देती हैं, जो अवैध धार्मिक रूपांतरणों को दंडनीय बनाते हैं। CJP का तर्क है कि इन कानूनों का चयनात्मक रूप से उपयोग किया जा रहा है, खासकर अंतरधार्मिक दंपतियों और स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धर्म चुनने के अधिकार का उल्लंघन है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित है।
यह मुद्दा पहली बार जनवरी 2020 में न्यायिक समीक्षा के तहत आया था, जब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की पीठ ने इस मामले में नोटिस जारी किया था।
बाद में, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक स्थानांतरण याचिका दायर की, जिसमें छह उच्च न्यायालयों में लंबित 21 समान मामलों को एक साथ सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया।
ये मामले गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित हैं। इनमें से गुजरात और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों ने गुजरात फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट, 2003 (संशोधित 2021) और मध्य प्रदेश फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट, 2021 के कुछ प्रावधानों के कार्यान्वयन पर आंशिक रोक लगाई है। इन अंतरिम आदेशों को संबंधित राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
मामले का शीर्षक: सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
मामला संख्या: WP(Crl) No. 428/2020 और संबंधित मामले