दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में नकली कैंसर रोधी दवाओं के वितरण में शामिल आरोपी लवी नारुला की PMLA, 2002 के तहत जमानत याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने अपने आदेश में कहा, "आवेदक एक स्थापित अपराध सिंडिकेट का हिस्सा है... जो जानलेवा नकली दवाएं बेचकर जनस्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डालता है।"
जमानत अस्वीकृति के प्रमुख कारण
1. अपराध की गंभीरता और सिंडिकेट में भूमिका
अदालत ने आवेदक की भूमिका को रेखांकित किया कि वह खाली वायल्स की खरीद, नकली दवाओं के निर्माण और मरीजों को बेचने वाले संगठित नेटवर्क में शामिल था। प्रवर्तन निदेशालय (ED) के अनुसार, नारुला ने मुख्य आरोपी विफिल जैन को ₹42 लाख और नीरज चौहान को ₹12.97 लाख की राशि नकली कीट्रूडा और ऑपडाइटा इंजेक्शन खरीदने के लिए हस्तांतरित की थी।
"यह अपराध आर्थिक नुकसान से परे है—यह जीवन को खतरे में डालता है। आवेदक की धन शोधन में भूमिका को हल्के में नहीं लिया जा सकता," अदालत ने टिप्पणी की।
2. ₹1 करोड़ की सीमा से छूट का अप्रासंगिकता
नारुला ने PMLA की धारा 45 के प्रावधान का हवाला देते हुए दावा किया कि उनके मामले में आरोपित धनराशि (₹7.45 लाख) ₹1 करोड़ से कम है। अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा:
"पूरा धन शोधन योजना 1 करोड़ रुपये से अधिक की है। आवेदक की भूमिका को सिंडिकेट के सामूहिक संचालन के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।"
3. PMLA की धारा 19 का अनुपालन
आवेदक ने ED की गिरफ्तारी को "कारणों पर विश्वास" के अभाव में चुनौती दी। अदालत ने सेन्थिल बालाजी बनाम राज्य (2023) का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गिरफ्तारी के लिए भौतिक सबूत आवश्यक हैं। इस मामले में, ED ने लेन-देन के रिकॉर्ड, व्हाट्सऐप चैट्स और नारुला के स्वीकारोक्ति प्रस्तुत किए।
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4. धारा 50 के बयानों का सबूती मूल्य
नारुला का दावा था कि उनकी गिरफ्तारी सह-आरोपियों के बयानों पर आधारित है। अदालत ने अभिषेक बनर्जी बनाम ED (2024) का संदर्भ देते हुए स्पष्ट किया कि धारा 50 के तहत दर्ज बयान प्रमाणिक होते हैं। अदालत ने कहा:
"ED का मामला केवल बयानों पर नहीं, बल्कि वित्तीय लेन-देन और डिजिटल सबूतों पर आधारित है, जो आवेदक की सक्रिय भूमिका दर्शाते हैं।"
5. धारा 24 PMLA के तहत सबूत का भार
अदालत ने धारा 24 पर जोर दिया, जो यह मानती है कि अपराधिक आय दूषित है जब तक कि विपरीत साबित न हो। प्रेम प्रकाश बनाम ED (2024) के हवाले से कहा गया कि ED ने मूलभूत तथ्य—अपराध की उपस्थिति, आय का स्रोत और आवेदक की भागीदारी—साबित कर दी थी। नारुला नकली दवाओं की बिक्री से प्राप्त ₹7.45 लाख के शोधन में अपनी भूमिका नहीं खारिज कर सके।
त्रिकोणीय परीक्षण और सबूत छेड़छाड़ का जोखिम
अदालत ने जमानत हेतु "त्रिकोणीय परीक्षण" लागू किया:
- पलायन का जोखिम: नारुला के वित्तीय संसाधन और COVID-19 के दौरान दवाओं का जमाखोरी का इतिहास।
- सबूत छेड़छाड़: 35 गवाहों (जिनमें मरीज शामिल) के साथ, अदालत को गवाहों को डराने की आशंका।
- पुनः अपराध की संभावना: सिंडिकेट का संगठित स्वरूप यह इंगित करता है कि जमानत पर छूटने पर गतिविधियाँ जारी रह सकती हैं।
निष्कर्ष: PMLA के सख्त ढांचे की पुष्टि
न्यायमूर्ति सिंह ने निष्कर्ष निकाला कि नारुला धारा 45 की दोहरी शर्तें—निर्दोषता साबित करना और पुनः अपराध की संभावना न होना—पूरी नहीं कर सके। अदालत ने जोर देकर कहा, "जनस्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले आर्थिक अपराधों को कड़ी जांच की आवश्यकता होती है। जमानत यांत्रिक रूप से नहीं दी जा सकती।"
मामला संदर्भ: लवी नारुला बनाम प्रवर्तन निदेशालय (BAIL APPLN. 3808/2024)