दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक नरेश बालियान की कस्टडी पैरोल की याचिका खारिज कर दी। बालियान ने यह राहत अपनी पत्नी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार में मदद करने के लिए मांगी थी, जिनके पास राजनीतिक अनुभव नहीं है। न्यायमूर्ति विकास महाजन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बालियान का मामला 2020 दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन से अलग है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रचार की अनुमति दी थी।
कोर्ट का तर्क और प्रमुख टिप्पणियां
न्यायमूर्ति महाजन ने स्पष्ट किया कि बालियान स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, जबकि ताहिर हुसैन को उनके अपने चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम राहत मिली थी। कोर्ट ने कहा, "अगर वह (बालियान) खुद चुनाव लड़ रहे होते, तो स्थिति अलग होती। ताहिर हुसैन का मामला भिन्न है। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया था कि यह एक उदाहरण (प्रीसीडेंट) नहीं बनेगा।" साथ ही, कोर्ट ने बालियान के खिलाफ चल रही जांच और गैंगस्टर कपिल संगवान के नेतृत्व वाले संगठित अपराध सिंडिकेट से उनके जुड़ाव के आरोपों को गंभीरता से लिया।
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दिल्ली पुलिस ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जांच अभी जारी है और कुछ गवाह हाल ही में सामने आए हैं। पुलिस ने दावा किया, "जांच नाज़ुक दौर में है। उनकी रिहाई से गवाहों पर दबाव बन सकता है।" बालियान के वकील एम.एस. खान ने जवाब दिया कि उनके मुवक्किल को संरक्षित गवाहों की जानकारी नहीं है और वह हस्तक्षेप नहीं कर सकते। खान ने कहा,
"मैं गवाहों तक कैसे पहुंचूंगा? मेरी पत्नी को मार्गदर्शन चाहिए—पति का स्थान कोई नहीं ले सकता।"
मामले की पृष्ठभूमि
बालियान को 4 दिसंबर, 2024 को MCOCA के तहत गिरफ्तार किया गया, जो एक अलग ब्लैकमेलिंग केस में जमानत मिलने के कुछ घंटों बाद हुआ। MCOCA मामले में उन पर दिल्ली भर में 16 एफआईआर दर्ज संगठित अपराध सिंडिकेट से जुड़ने का आरोप है। 15 जनवरी को एक ट्रायल कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि सिंडिकेट में उनकी सक्रिय भूमिका के "पुख्ता सबूत" हैं। न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने MCOCA की सख्त जमानत शर्तों का हवाला देते हुए कहा कि बालियान जमानत के पात्र नहीं हैं और रिहा होने पर गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं।
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याचिका और कानूनी प्रक्रिया
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान, बालियान के वकील ने केस को "निराधार" बताया और कहा कि प्रारंभिक एफआईआर में उनका नाम तक नहीं था। खान ने दावा किया, "उन्होंने खुद उन अपराधों की शिकायत दर्ज कराई थी, जिनमें अब उन पर आरोप लगे हैं।" हालांकि, अभियोजन पक्ष ने बालियान को सिंडिकेट का "सहयोगी" बताते हुए कहा कि इस गिरोह ने "अवैध संपत्ति जमा कर समाज में अराजकता फैलाई है।"
कोर्ट ने बालियान की नियमित जमानत याचिका की सुनवाई 30 जनवरी के लिए स्थगित कर दी, जब उनके वकील ने कस्टडी पैरोल की मांग वापस ले ली।
"MCOCA के सख्त प्रावधान संगठित अपराध रोकने के लिए बनाए गए हैं। इस स्तर पर आरोपी को रिहा करना न्यायिक प्रक्रिया और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।"
— ट्रायल कोर्ट के आदेश से, 15 जनवरी
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला MCOCA मामलों में न्यायपालिका की सतर्कता को दर्शाता है, खासकर जब जांच चल रही हो। बालियान की टीम ने ताहिर हुसैन के मामले से तुलना की कोशिश की, लेकिन कोर्ट ने प्रत्येक केस की विशिष्टता पर जोर दिया। ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत इनकार और हाई कोर्ट द्वारा पैरोल खारिज किए जाने के बाद, अब बालियान की किस्मत 30 जनवरी की जमानत सुनवाई पर टिकी है, जो MCOCA के तहत उच्च-प्रोफाइल मामलों के लिए नए मानदंड स्थापित कर सकती है।