राजस्थान हाईकोर्ट ने सुरेश बनाम ध्रुव नारायण पुरोहित एवं अन्य मामले में यह निर्णय दिया कि यदि मकान मालिक की कोई नई वास्तविक आवश्यकता उत्पन्न होती है, तो रेस ज्यूडिकेटा सिद्धांत के बावजूद एक नई बेदखली याचिका दायर की जा सकती है।
न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने यह फैसला उस रिट याचिका को खारिज करते हुए सुनाया जिसमें किराया न्यायाधिकरण, जयपुर के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 11 के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि बेदखली का यह मुकदमा विचारणीय नहीं है क्योंकि यह उसी सद्भावनापूर्ण आवश्यकता के आधार पर आधारित था जिसे 2018 में अंतिम रूप से दायर एक पिछले मुकदमे में पहले ही खारिज कर दिया गया था।
पूर्व में मकान मालिक ने साड़ी की दुकान चलाने की ज़रूरत बताते हुए बेदखली की याचिका दायर की थी, जिसे खारिज कर दिया गया। अब एक नई याचिका टूर एंड ट्रेवल्स व्यवसाय शुरू करने की आवश्यकता के आधार पर दायर की गई है, साथ ही दो अतिरिक्त आधार जोड़े गए हैं: वैकल्पिक आवास की उपलब्धता और दुकान का उपयोग न करना।
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"पिछली बार आवश्यकता के प्रश्न को मकान मालिक के विरुद्ध तय कर दिया गया हो, तब भी यह नहीं कहा जा सकता कि उसे भविष्य में कभी भी वास्तविक और वास्तविक आवश्यकता नहीं होगी। ऐसी स्थिति में बेदखली की याचिका को प्रतिबंधित नहीं माना जा सकता।”
– राजस्थान हाईकोर्ट
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ज़रूरत की प्रकृति में बदलाव और नए आधारों पर याचिका दायर करना न्यायसंगत है। न्यायमूर्ति ढांड ने कहा कि भले ही संपत्ति वही हो, लेकिन नया कारण – यानि ज़रूरत – अलग समय पर अलग हो सकता है।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णयों का भी हवाला दिया, जैसे कि:
“अगर बोना फाइड आवश्यकता के आधार पर दायर याचिका खारिज भी हो जाए, तो यह नहीं कहा जा सकता कि मकान मालिक को भविष्य में कभी वास्तविक आवश्यकता नहीं हो सकती।”
– एन.आर. नारायण स्वामी बनाम बी. फ्रांसिस जगन
इसी प्रकार सुरजमल बनाम राधेश्याम में सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“केवल इस आधार पर कि पहले आवश्यकता का मुद्दा खारिज कर दिया गया, यह नहीं माना जा सकता कि भविष्य में कभी वास्तविक आवश्यकता उत्पन्न नहीं होगी।”
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इसके अलावा, हाईकोर्ट ने अपने ही फैसले रत्नी देवी बनाम किशन कंवर के विधिक उत्तराधिकारी का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि बेदखली के आधार समय के साथ उत्पन्न और समाप्त होते रहते हैं, और यदि नई परिस्थितियों के आधार पर याचिका दायर की गई हो, तो उसे वैध माना जाएगा।
अंततः, कोर्ट ने याचिका में कोई दम नहीं पाया और ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखा:
“ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता की धारा 11 सीपीसी के तहत दायर याचिका को खारिज कर कोई त्रुटि नहीं की।”
तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
शीर्षक: सुरेश बनाम ध्रुव नारायण पुरोहित एवं अन्य