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सिर्फ धोखाधड़ी घोषित करना रद्द होने से FIR नहीं होगी रद्द : सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश

Shivam Y.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि उधारकर्ताओं के खाते धोखाधड़ी के रूप में तकनीकी कारणों से गलत तरीके से घोषित किए गए हों और बाद में उसे रद्द कर दिया गया हो, तब भी उनके खिलाफ दर्ज FIR और आपराधिक कार्यवाही जारी रह सकती है।

सिर्फ धोखाधड़ी घोषित करना रद्द होने से FIR नहीं होगी रद्द : सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि उधारकर्ता के बैंक खातों को “धोखाधड़ी” के रूप में चिह्नित करना प्रक्रियात्मक त्रुटियों के कारण रद्द कर दिया गया हो, तब भी उनके खिलाफ दर्ज FIR और आपराधिक कार्यवाही जारी रह सकती है।

न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा रद्द की गई FIRs को बहाल करते हुए कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की 2016 की 'फ्रॉड मास्टर डाइरेक्शन' के तहत की गई प्रशासनिक कार्रवाई को आपराधिक प्रक्रिया से जोड़ा नहीं जा सकता।

“FIR, एक अपराध की जानकारी लेकर केवल कानून को गति देती है। इसका बैंक द्वारा लिए गए प्रशासनिक निर्णय से कोई संबंध नहीं... दोनों प्रक्रियाएं पूरी तरह अलग हैं।”
— सुप्रीम कोर्ट

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उधारकर्ताओं ने बैंक द्वारा धोखाधड़ी घोषित किए जाने और दर्ज FIR को चुनौती दी थी। उन्होंने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम राजेश अग्रवाल (2023) केस का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी खाते को धोखाधड़ी घोषित करने से पहले उधारकर्ता को सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए। उच्च न्यायालयों ने इसी आधार पर न केवल धोखाधड़ी घोषित करने को रद्द किया, बल्कि FIR भी रद्द कर दी।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल प्रशासनिक आदेश रद्द होने से आपराधिक मामले खत्म नहीं होते। कोर्ट ने कहा कि यदि अपराध के लिए पर्याप्त सामग्री है तो FIR वैध रह सकती है, भले ही प्रशासनिक निर्णय कानूनी त्रुटियों के कारण रद्द कर दिया गया हो।

“यदि कोई FIR प्रशासनिक कार्यवाही के आधार पर दर्ज की गई हो, और वह कार्यवाही तकनीकी कारणों से रद्द हो जाए, तब भी FIR स्वतः रद्द नहीं हो जाती।”
— सुप्रीम कोर्ट

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कोर्ट ने यह भी कहा कि कई मामलों में FIR बिना अनुरोध के ही रद्द कर दी गई, और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को न तो पक्षकार बनाया गया और न ही सुना गया, जो न्यायसंगत नहीं है।

पीठ ने केनरा बैंक बनाम देबाशीष दास मामले का भी हवाला दिया:

“जब किसी आदेश को प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन के कारण रद्द किया जाता है, तो यह अंतिम निर्णय नहीं होता... बल्कि वह आदेश त्रुटिपूर्ण मानकर हटाया जाता है, पर पूरी कार्यवाही समाप्त नहीं होती।”

न्यायालय ने इन सभी मामलों को पांच श्रेणियों में बांटा और प्रत्येक के अनुसार आगे की प्रक्रिया स्पष्ट की। जैसे कुछ में जांच जारी है, कुछ में पूरी हो चुकी है, और कुछ में अंतरिम राहत दी गई है।

केस विवरण : केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम सुरेंद्र पटवा और संबंधित मामले | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 007735 - / 2024

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