कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार, 17 मार्च को टीवी पत्रकार राहुल शिवशंकर के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। यह मामला उनके एक ट्वीट को लेकर दर्ज किया गया था, जिसमें उन्होंने कर्नाटक सरकार के बजट में धार्मिक अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए किए गए धन आवंटन पर सवाल उठाया था। अदालत ने शिवशंकर की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि यह एफआईआर किसी ठोस आधार पर दर्ज नहीं की गई थी।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा:
"याचिका स्वीकार की जाती है, और एफआईआर को खारिज किया जाता है।"
मामले की पृष्ठभूमि
फरवरी 13 को अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला कोलार के पार्षद एन. अंबारेश की शिकायत पर दर्ज किया गया था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि शिवशंकर का ट्वीट "व्यंग्यात्मक" था और इससे धार्मिक समूहों के बीच तनाव पैदा हो सकता था।
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शिवशंकर ने अपने ट्वीट में राज्य के बजट को लेकर सवाल उठाया था कि मंदिर, जो सरकार के लिए बड़े पैमाने पर राजस्व उत्पन्न करते हैं, उन्हें कोई धनराशि आवंटित नहीं की गई, जबकि अन्य धार्मिक स्थलों को वित्तीय सहायता प्रदान की गई।
शिवशंकर के वकील बिपिन हेगड़े ने अदालत में दलील दी:
"मैंने अपने ट्वीट में कोई गलत जानकारी नहीं दी। मैंने सिर्फ वही लिखा है जो बजट में उल्लेखित है, मिलॉर्ड्स।"
हालांकि, राज्य के लिए पेश हुए विशेष लोक अभियोजक बी. एन. जगदीशा ने कहा:
"यह ट्वीट पूरी तरह से गलत है। इसका मकसद दो समुदायों के बीच विवाद पैदा करना है।"
शिवशंकर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A (समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देना) और धारा 505 (सार्वजनिक अशांति भड़काने वाले बयान) के तहत मामला दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि शिवशंकर के बयान से सांप्रदायिक तनाव भड़क सकता है क्योंकि इसमें वक्फ संपत्तियों, मंगलुरु में हज भवन और ईसाई उपासना स्थलों के विकास के लिए आवंटित बजट पर तंज कसा गया था।
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शिवशंकर ने अपनी याचिका में कहा कि उनका ट्वीट केवल तीन तथ्यात्मक बिंदुओं को प्रस्तुत कर रहा था और यह कहना कि वह झूठी जानकारी फैला रहे हैं, पूरी तरह गलत है। उन्होंने तर्क दिया:
"ऐसे सवालों को किसी भी तरह से धार्मिक समुदायों के बीच नफरत या वैमनस्य फैलाने का प्रयास नहीं कहा जा सकता। अगर ऐसे सवाल भी गैरकानूनी माने जाएंगे, तो इस देश में कोई भी पत्रकार या आम नागरिक धार्मिक मामलों पर सवाल नहीं उठा सकेगा।"
उन्होंने यह भी कहा कि एक पत्रकार के रूप में वे नियमित रूप से ऐसे तथ्यात्मक ट्वीट साझा करते हैं ताकि जनता को महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जागरूक किया जा सके, और इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए।
अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद राहुल शिवशंकर के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि उनका ट्वीट आपराधिक मुकदमे के लिए पर्याप्त आधार नहीं था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार की नीतियों और धन आवंटन पर सवाल उठाना अपराध नहीं हो सकता।
यह फैसला भारतीय पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है, क्योंकि यह बताता है कि सरकारी नीतियों पर सवाल उठाने को सांप्रदायिक तनाव भड़काने के रूप में नहीं देखा जा सकता।
मामले का विवरण:
- मामला: राहुल शिवशंकर बनाम आपराधिक जांच विभाग और अन्य
- मामला संख्या: CRL.P 2457/2024