ओडिशा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मुस्लिम युवक फैयाजुद्दीन खान उर्फ़ बादल खान के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को खारिज कर दिया। इस मामले में आरोपी पर POCSO एक्ट और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत नाबालिग हिंदू लड़की के अपहरण और यौन शोषण का आरोप था। लेकिन, बाद में लड़की के बालिग होने के बाद दोनों ने शादी कर ली और अब वे एक साथ सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति सिबो शंकर मिश्रा ने अपने फैसले में कहा:
“इस मामले में आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, विशेष रूप से तब जब पीड़िता और याचिकाकर्ता ने विवाह कर लिया है और साथ में सुखद जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आरोपी को जेल भेजना न केवल अन्याय होगा, बल्कि पीड़िता के सर्वोत्तम हितों के खिलाफ भी होगा, क्योंकि इससे उनका स्थिर जीवन प्रभावित हो सकता है।”
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले की शुरुआत 10 मई 2022 को दर्ज की गई एक एफआईआर से हुई थी, जिसमें पीड़िता की मां ने आरोप लगाया कि 9 मई 2022 को आरोपी ने उनकी नाबालिग बेटी का अपहरण कर लिया और घर से ₹8,000 नकद और सोने के आभूषण लेकर चला गया। इस आरोप के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366 और 376(2)(n) के साथ POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत मामला दर्ज किया गया।
जांच पूरी होने के बाद, ट्रायल कोर्ट ने इन आरोपों पर संज्ञान लिया। हालांकि, मुकदमे के दौरान पीड़िता और आरोपी ने शादी कर ली और परिवार ने भी इसका समर्थन किया। पीड़िता और उसका परिवार अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे।
अदालत ने इस मामले की सुनवाई के दौरान ‘यौन शोषण’ और ‘किशोर प्रेम संबंध’ के बीच अंतर को स्पष्ट किया।
“किशोर प्रेम एक स्वाभाविक रोमांटिक संबंध है, जो कभी-कभी यौन संपर्क की ओर बढ़ सकता है। लेकिन इसमें किसी प्रकार की जबरदस्ती, बलप्रयोग या किसी को धोखे से यौन गतिविधियों में धकेलने का तत्व नहीं होता। यदि आरोपी प्रभावशाली स्थिति में होता और उसने दबाव या चालाकी से किसी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया होता, तो यह शोषण का मामला बनता। लेकिन यदि समान आयु के किशोर प्रेम में पड़कर भाग जाते हैं और विवाह कर लेते हैं, तो इसे अपराध नहीं माना जाना चाहिए।”
न्यायमूर्ति मिश्रा ने 'रोसलिन राउत बनाम ओडिशा राज्य' के अपने पिछले फैसले का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि यदि किशोर प्रेम संबंध शादी में बदल जाते हैं, तो POCSO के तहत आरोपों को समाप्त करने पर विचार किया जा सकता है।
कोर्ट ने ‘रामजी लाल बैरवा बनाम राजस्थान राज्य’ मामले का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि POCSO के तहत दर्ज मामले केवल समझौते के आधार पर खारिज नहीं किए जा सकते, क्योंकि ये अपराध पूरे समाज के खिलाफ माने जाते हैं। हालांकि, जस्टिस मिश्रा ने बताया कि रामजी लाल मामले में एक शिक्षक द्वारा नाबालिग छात्रा का शोषण किया गया था, जबकि इस मामले में यह एक सहमति आधारित किशोर प्रेम संबंध था।
"जहां कोई प्रेम संबंध शादी में बदल जाता है और समाज द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, वहां आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करना न्यायोचित हो सकता है।"
इसके अलावा, अदालत ने 'इन रि: राइट टू प्राइवेसी ऑफ अडोलेसेंट्स' मामले का भी हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को स्वीकार किया कि सहमति-आधारित संबंधों में पीड़िता को अनावश्यक कानूनी परेशानियों से बचाना जरूरी है।
अदालत ने यह मानते हुए कि दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से विवाह कर लिया है और अब एक साथ रह रहे हैं, यह निर्णय दिया कि इस मामले को जारी रखना किसी भी कानूनी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करेगा।
“इस मामले में कोई जघन्य अपराध नहीं हुआ है, जिससे समाज को व्यापक स्तर पर नुकसान पहुंचे। यह पूरी तरह से एक निजी मामला है और इसे सुलझाने में आपसी समझौते को महत्व देना न्यायसंगत होगा।”
इस आधार पर, फैयाजुद्दीन खान के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया गया