इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीमती विमला देवी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उत्तर प्रदेश राजस्व विभाग द्वारा जारी एक नोटिस को चुनौती दी गई थी। 28 जून 2025 को जारी इस नोटिस में उन्हें अनधिकृत निर्माण हटाने या ध्वस्तीकरण का सामना करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय के इस फैसले ने अस्थायी राहत प्रदान की है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सीपीसी की धारा 67 के तहत कानूनी कार्यवाही पूरी होने तक निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, सुश्री विमला देवी, ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। नोटिस में अवैध निर्माण को हटाने की मांग की गई थी। अनुपालन न करने पर अधिकारियों द्वारा ध्वंस की कार्रवाई की जानी थी।
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अपने वकील विनय कुमार तिवारी द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने पर, विमला देवी ने अचानक की जाने वाली कार्रवाई के खिलाफ न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की। वहीं, राज्य की ओर से स्टैंडिंग काउंसिल और पंकज गुप्ता ने स्पष्ट किया कि नोटिस केवल एक प्रारंभिक कदम था। उन्होंने पुष्टि की कि धारा 67 सीपीसी के तहत औपचारिक कार्यवाही शुरू की गई है और यह कार्यवाही पूरी होने तक कोई ध्वंस नहीं किया जाएगा।
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद, माननीय न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने याचिका का निपटारा एक स्पष्ट निर्देश के साथ किया। न्यायालय ने आदेश दिया कि धारा 67 सीपीसी के तहत कार्यवाही पूर्ण होने तक कोई ध्वंस कार्रवाई नहीं की जा सकती। निर्णय में इस बात पर जोर दिया गया कि अधिकारियों को कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा और मामले का निपटारा कानून के अनुसार करना होगा।
"धारा 67 सीपीसी के तहत कार्यवाही पूर्ण होने तक कोई ध्वंस कार्रवाई नहीं की जाएगी, जिसका निपटारा कानून के अनुसार किया जाएगा।"
यह फैसला सुनिश्चित करता है कि विमला देवी और इसी तरह की स्थितियों में फंसे अन्य लोगों को निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया के बिना तत्काल ध्वंस से सुरक्षा मिलेगी।
मुख्य बिंदु
मनमाने ध्वंस के खिलाफ कानूनी सुरक्षा: यह निर्णय इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि अधिकारी उचित कानूनी कार्यवाही पूरी किए बिना संरचनाओं को ध्वस्त नहीं कर सकते।
उचित प्रक्रिया का महत्व: न्यायालय के आदेश में इस बात पर जोर दिया गया है कि जबरदस्ती की कार्रवाई से पहले धारा 67 सीपीसी जैसे कानूनी ढांचे का पालन करना आवश्यक है।
संपत्ति मालिकों के लिए राहत: इसी तरह के नोटिस का सामना कर रहे संपत्ति मालिक अपने अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग कर सकते हैं।
केस का शीर्षक: श्रीमती विमला देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, सचिव राजस्व लखनऊ एवं 4 अन्य
केस संख्या: अनुच्छेद 227 के अंतर्गत मामले, संख्या - 4237, 2025
याचिकाकर्ता के वकील: विनय कुमार तिवारी
प्रतिवादी के वकील: C.S.C. (Standing Counsel) एवं पंकज गुप्ता