सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गजानन दत्तात्रेय गोरे की अपील खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें ₹25 लाख की शर्त न पूरी करने पर उसकी ज़मानत रद्द कर दी गई थी। कोर्ट ने देशभर की ट्रायल और हाईकोर्ट्स को निर्देश दिया है कि आगे से किसी भी आरोपी को केवल किसी मौखिक या लिखित गारंटी के आधार पर ज़मानत न दी जाए।
मामला
गजानन दत्तात्रेय गोरे को 17 अगस्त 2023 को सतारा सिटी पुलिस स्टेशन (C.R. No. 652/2023) में दर्ज आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया गया था। उस पर IPC की धाराओं 406, 408, 420, 467, 468, 471, 504, और 506 के तहत ₹1.6 करोड़ की हेराफेरी का आरोप था।
वह सतारा एडवर्टाइजिंग कंपनी और I-Can ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में बिज़नेस डेवलपमेंट मैनेजर था, जहां से आरोपी ने कथित रूप से इतनी बड़ी रकम निकाली।
ट्रायल कोर्ट से ज़मानत खारिज होने के बाद गोरे ने बॉम्बे हाईकोर्ट में आवेदन दिया। 1 अप्रैल 2024 को हाईकोर्ट ने उसे ₹25 लाख की रकम पांच महीने में जमा करने की शर्त पर ज़मानत दी। गोरे ने हलफनामा दिया:
“मैं ₹25,00,000 (पच्चीस लाख रुपये) की राशि पांच महीने के अंदर इस माननीय न्यायालय में जमा करने का वचन देता हूं।”
गोरे ने ज़मानत लेने के बाद कोर्ट में ₹25 लाख की रकम जमा नहीं की। इसके बाद शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में आवेदन देकर ज़मानत रद्द करने की मांग की।
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हाईकोर्ट ने पाया कि ज़मानत सिर्फ इस भरोसे पर दी गई थी कि आरोपी रकम जमा करेगा। जब उसने वचन तोड़ा, तो अदालत ने उसकी ज़मानत रद्द कर दी और आदेश दिया कि:
“आरोपी ने ₹25 लाख की राशि जमा करने की गारंटी दी थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया… वह अब कोर्ट को भ्रमित करने की कोशिश कर रहा है।” — हाईकोर्ट
गोरे ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि उसमें कोई दम नहीं है। कोर्ट ने इस तरह की चालबाजी की कड़ी आलोचना की और कहा कि:
“ऐसी प्रथा अब बंद होनी चाहिए। वादी कोर्ट के साथ खेल रहे हैं और न्यायपालिका की गरिमा को नुकसान पहुंचा रहे हैं।” — सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने अपील खारिज करते हुए आरोपी पर ₹50,000 का जुर्माना भी लगाया, जो सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र में जमा करना होगा।
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इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स और ट्रायल कोर्ट्स को आदेश दिया कि:
“अब किसी भी आरोपी या उसके परिवार द्वारा दी गई मौखिक या लिखित गारंटी के आधार पर नियमित या अग्रिम ज़मानत नहीं दी जाएगी। ज़मानत सिर्फ केस की मेरिट पर ही तय की जाएगी।”
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की प्रति सभी हाईकोर्ट्स को भेजने के लिए रजिस्ट्री को भी निर्देश दिया है।
केस का शीर्षक: गजानन दत्तात्रेय गोरे बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य
निर्णय तिथि: 28 जुलाई, 2025
केस का प्रकार: आपराधिक अपील संख्या 3219/2025
(विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक अपील) संख्या 10749/2025 से उत्पन्न)