मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को तमिलनाडु सरकार द्वारा लाए गए उन संशोधनों पर रोक लगा दी है, जिनके तहत राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने का अधिकार राज्यपाल से लेकर राज्य सरकार को सौंपा गया था। यह अंतरिम आदेश न्यायमूर्ति जी. आर. स्वामीनाथन और न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मीनारायण की अवकाश पीठ ने दिया।
यह संशोधन हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद किए गए थे, जिसमें राज्यपाल के अधिकारों की परिभाषा दी गई थी। कोर्ट ने यह आदेश अधिवक्ता के. वेंकटचलपति द्वारा दायर याचिका पर दिया, जिसमें इन संशोधनों को चुनौती दी गई थी।
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"कोर्ट ने यह अंतरिम आदेश तब भी पारित किया, जब राज्य सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन ने बार-बार यह कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और वहां स्थानांतरण याचिका दाखिल की गई है।"
याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किए गए कुल 12 संशोधन केंद्र के कानून, यानी यूजीसी रेगुलेशन्स, से टकराते हैं। उनका तर्क था कि यूजीसी के नियमों के अनुसार, कुलपति की नियुक्ति सर्च कमेटी द्वारा सुझाए गए नामों में से चांसलर द्वारा की जानी चाहिए। लेकिन राज्य सरकार ने अपने संशोधनों में यह अधिकार अपने पास रख लिया है, जो यूजीसी के नियमों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट डामा शेषाद्रि नायडू ने तर्क दिया कि जब केंद्र और राज्य के कानूनों में टकराव होता है, खासकर समवर्ती सूची के मामलों में, तो केंद्र का कानून सर्वोपरि होता है। उनका कहना था कि चूंकि शिक्षा समवर्ती सूची में आता है, इसलिए यूजीसी रेगुलेशन्स को प्राथमिकता मिलनी चाहिए और राज्य के संशोधन असंवैधानिक हैं।
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट पी. विल्सन ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इसमें कोई तात्कालिकता नहीं है और कोर्ट को इसमें अंतरिम रोक नहीं लगानी चाहिए। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण याचिका पहले ही दाखिल की जा चुकी है और यह 2-3 दिन में सुनी जाएगी।
हालांकि, कोर्ट ने राज्य की इस दलील को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता के वकील को दलीलें रखने की अनुमति दी।
सुनवाई के दौरान विल्सन ने यह भी आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत की गई गजट अधिसूचना जाली है। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि इसे रिकॉर्ड पर न लिया जाए और इसकी जांच सीबी-सीआईडी से कराई जाए।
"यह जो गजट लगाई गई है वह नकली है। यह हमारी गजट नहीं है। इसकी सीबी-सीआईडी जांच होनी चाहिए। कोर्ट को इस पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। यह गजट इनके हाथ कैसे लगी? यह देखा जाना जरूरी है। केवल याचिकाकर्ता ही नहीं, बल्कि अधिवक्ता भी जवाबदेह होंगे," विल्सन ने कहा।
वहीं, राज्य के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) ने कोर्ट से कहा कि मामला एक महत्वपूर्ण संवैधानिक सवाल से जुड़ा है और बिना राज्य को जवाब देने का अवसर दिए इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा है कि किसी कानून पर सिर्फ इसलिए रोक नहीं लगाई जा सकती जब तक वह prima facie अवैध न हो।
उन्होंने आग्रह किया कि मामले को अदालत की छुट्टियों के बाद सुना जाए, ताकि राज्य अपना जवाब दाखिल कर सके। उन्होंने कहा कि अगर राज्य को उत्तर देने का अवसर नहीं दिया गया तो ऐसा प्रतीत होगा कि कोर्ट ने पहले से ही निर्णय ले लिया है।
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हालांकि, कोर्ट ने सुनवाई जारी रखी और उक्त संशोधनों पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश पारित किया।
मामले का नाम:
के. वेंकटचलपति @ कुट्टी बनाम तमिलनाडु राज्य