भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें मोटर वाहन अधिनियम के तहत ‘कानूनी प्रतिनिधि’ की व्याख्या को विस्तारित किया गया है। इस फैसले से यह सुनिश्चित होता है कि जो लोग मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर थे, वे मुआवजे के लिए दावा कर सकते हैं, चाहे वे निकटतम परिवार के सदस्य न भी हों।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें मृतक के पिता और छोटी बहन को मुआवजे का पात्र नहीं माना गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
मामला साधना तोमर और अन्य बनाम अशोक कुशवाहा और अन्य से संबंधित है, जिसमें 24 वर्षीय धीरज सिंह तोमर की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। वह एक थोक फल विक्रेता थे और अपने परिवार की आर्थिक मदद कर रहे थे। उनके पिता और छोटी बहन ने मुआवजे के लिए दावा दायर किया।
मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) ने केवल कुछ दावेदारों को मुआवजा दिया, जबकि पिता और बहन को इस आधार पर बाहर कर दिया कि वे मृतक के आश्रित नहीं थे। उच्च न्यायालय ने इस फैसले को बरकरार रखा, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘कानूनी प्रतिनिधि’ शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा:
“कानूनी प्रतिनिधि की परिभाषा केवल पति, पत्नी, माता-पिता और बच्चों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। मोटर वाहन अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है, जिसका उद्देश्य सड़क दुर्घटनाओं से प्रभावित परिवारों को वित्तीय राहत प्रदान करना है।”
कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख किया, जिनमें शामिल हैं:
गुजरात SRTC बनाम रमणभाई प्रभातभाई (1987) 3 SCC 234 – यह माना गया कि कानूनी प्रतिनिधि कोई भी व्यक्ति हो सकता है, जो मृतक की मृत्यु के कारण आर्थिक रूप से प्रभावित हुआ हो, भले ही वह निकटतम परिवार का सदस्य न हो।
एन. जयश्री बनाम चोलामंडलम MS जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2022) 14 SCC 712 – यह निर्णय दिया गया कि मुआवजा प्राप्त करने के लिए दावेदार को केवल अपनी आश्रितता साबित करनी होगी।
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी (2017) 16 SCC 680 – इसमें आय, भविष्य की संभावनाएं और उचित गुणक निर्धारित करने के दिशा-निर्देश दिए गए।
Read Also:- इलेक्ट्रोक्यूशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नियोक्ताओं को किया बरी, इरादे की कमी का हवाला
अंतिम फैसला और मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया और मृतक की आय और आश्रितों को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की पुनर्गणना की।
संशोधित मुआवजा गणना:
- मासिक आय: ₹6,500 (न्यूनतम वेतन मानक के अनुसार)
- वार्षिक आय: ₹78,000
- भविष्य की संभावनाएं (40%): ₹1,09,200
- व्यक्तिगत खर्चों की कटौती (1/4th): ₹27,300
- गुणक (18) लागू: ₹14,74,200
- संपत्ति और अंतिम संस्कार खर्च: ₹18,150 प्रत्येक
- संवेदनात्मक हानि (₹48,400 प्रति आश्रित, कुल 5 आश्रित): ₹2,42,000
- कुल मुआवजा: ₹17,52,500
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को भी बरकरार रखा, जिसमें बीमा कंपनी को पहले मुआवजा देने और फिर वाहन मालिक और चालक से वसूली करने के लिए कहा गया था।
यह फैसला सुनिश्चित करता है कि मोटर दुर्घटनाओं से प्रभावित परिवारों को व्यापक वित्तीय सुरक्षा मिले। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि मुआवजे की पात्रता केवल परिवार के संबंध पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि आर्थिक निर्भरता पर आधारित होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भविष्य में होने वाले दावों के लिए एक मिसाल स्थापित करता है, जो यह दर्शाता है कि मोटर वाहन अधिनियम को न्यायसंगत उद्देश्य से लागू किया जाना चाहिए, न कि केवल कानूनी सीमाओं में बांधा जाना चाहिए।
यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि मुआवजा उन सभी तक पहुंचे जो किसी दुर्घटना के कारण प्रभावित हुए हैं, ताकि न्यायपूर्ण मुआवजा प्रणाली कायम रह सके।
केस का शीर्षक: साधना तोमर और अन्य। बनाम अशोक कुशवाह एवं अन्य।