पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 163-ए के तहत दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजा पाने के लिए चालक की लापरवाही साबित करने की जरूरत नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह मुआवजा एक निश्चित संरचित फॉर्मूले के अनुसार दिया जाएगा, जिसमें दोष निर्धारण की आवश्यकता नहीं होती।
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163-ए की समझ
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163-ए पीड़ितों को त्वरित मुआवजा देने के लिए बनाई गई है। इसके अंतर्गत:
वाहन मालिक या बीमा कंपनी को उस स्थिति में मुआवजा देना होगा जब वाहन के उपयोग के कारण मृत्यु या स्थायी विकलांगता हो जाए।
दावा करने वाले को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं होगी कि दुर्घटना किसी व्यक्ति की गलती के कारण हुई।
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इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दुर्घटना पीड़ितों को लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचाकर त्वरित राहत दी जा सके।
न्यायालय का अवलोकन और निर्णय
न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति कीर्ति सिंह की खंडपीठ ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा:
"मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 163-ए की उपधारा (2) के अनुसार, दोष या लापरवाही का निर्धारण आवश्यक नहीं है। इस प्रावधान के तहत दायर याचिका में चालक की गलती के आधार पर मुआवजे का निर्धारण नहीं किया जाता।"
यह फैसला 2013 में दर्ज एक एफआईआर से संबंधित मामलों पर आया, जिसमें बिना किसी संकेतक के सड़क के बीच में खड़े ट्रैक्टर के कारण दुर्घटना हुई थी। न्यायाधिकरण ने धारा 163-ए के तहत मुआवजा प्रदान किया।
दुर्घटना तब हुई जब एक महिंद्रा बोलेरो जीप सामने से आ रहे वाहन की तेज रोशनी में सड़क पर खड़े ट्रैक्टर को नहीं देख पाई और उससे टकरा गई। इस हादसे में कई लोग घायल हुए।
पीड़ितों ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी), करनाल में धारा 163-ए के तहत याचिका दायर की, जिसके बाद उन्हें बिना लापरवाही साबित किए मुआवजा दिया गया।
अदालत ने मेडिकल खर्च की सीमा को लेकर विभिन्न न्यायिक दृष्टिकोणों का विश्लेषण किया।
ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम कुलविंदर कौर (2013) और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम वेद प्रकाश (2017) मामलों में मेडिकल खर्च की कोई ऊपरी सीमा तय नहीं की गई।
बजाज एलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सोनू (2016) मामले में अदालत ने कहा कि मेडिकल खर्च अधिकतम ₹15,000 तक ही सीमित होगा।
इस मामले में अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि चिकित्सा खर्च का उचित दस्तावेजी प्रमाण हो, तो बीमा कंपनी उसे चुनौती नहीं दे सकती।
"यदि दस्तावेजों से चिकित्सा खर्च का प्रमाण मिलता है, तो बीमा कंपनी उसे चुनौती नहीं दे सकती," अदालत ने कहा।
मुआवजा देने के लिए संरचित फॉर्मूला
अदालत ने दोहराया कि धारा 163-ए के तहत मुआवजा मोटर वाहन अधिनियम की दूसरी अनुसूची के अनुसार दिया जाएगा।
मृत्यु के मामले में ₹50,000 का मुआवजा दिया जाएगा।
स्थायी विकलांगता के मामले में ₹25,000 का मुआवजा मिलेगा।
वैध मेडिकल बिल के आधार पर अतिरिक्त मुआवजा भी दिया जा सकता है।
हालांकि दूसरी अनुसूची में 2019 में संशोधन किया गया था, अदालत ने स्पष्ट किया कि यह संशोधन इस मामले पर लागू नहीं होगा क्योंकि दुर्घटना 2013 में हुई थी।
लापरवाही साबित करने की आवश्यकता नहीं: पीड़ित धारा 163-ए के तहत बिना गलती साबित किए मुआवजा प्राप्त कर सकते हैं।
निर्धारित मुआवजा संरचना: मुआवजा दूसरी अनुसूची में दिए गए संरचित फॉर्मूले के आधार पर दिया जाएगा।
मेडिकल खर्च को मान्यता: दस्तावेजी प्रमाण के आधार पर मेडिकल खर्च की प्रतिपूर्ति की जा सकती है।
बीमा कंपनी की आपत्ति अस्वीकार्य: यदि चिकित्सा खर्च दस्तावेजों से प्रमाणित है, तो बीमा कंपनी उसे चुनौती नहीं दे सकती।