सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी वाहन का राष्ट्रीय परमिट (National Permit) वैध है, तो राज्य परमिट (State Permit) के नवीनीकरण न होने के आधार पर बीमा दावा खारिज नहीं किया जा सकता। यदि वाहन अपने पंजीकृत राज्य में ही था, तो राज्य परमिट के नवीनीकरण की आवश्यकता नहीं होती।
मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में, बिहार के एक ट्रक मालिक ने राष्ट्रीय बीमा कंपनी (National Insurance Company) के खिलाफ बीमा दावा खारिज किए जाने को लेकर न्यायालय में अपील दायर की थी। ट्रक 8 जून 2014 को एक शॉर्ट सर्किट के कारण आग की चपेट में आ गया था, और उस समय यह बिहार राज्य में था।
बीमा कंपनी ने दावा खारिज करते हुए तर्क दिया कि ट्रक का राज्य परमिट 14 अक्टूबर 2013 के बाद नवीनीकृत नहीं किया गया था। इसलिए, बिना वैध राज्य परमिट के राष्ट्रीय परमिट को भी अमान्य माना जाना चाहिए और बीमा दावा अस्वीकार कर दिया गया।
ट्रक मालिक ने बिहार राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (State Consumer Disputes Redressal Commission) में शिकायत दर्ज करवाई। आयोग ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह गैर-मानक आधार (Non-standard Basis) पर दावा निपटाए।
बीमा कंपनी ने राज्य आयोग के आदेश को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) में चुनौती दी। NCDRC ने बीमा कंपनी के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि बिना वैध परमिट के बीमा दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जहां न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथ्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
"राष्ट्रीय परमिट वैध था और ट्रक अपने पंजीकृत राज्य में था। इसलिए, राज्य परमिट के नवीनीकरण की अनुपस्थिति के आधार पर बीमा दावा अस्वीकार करना तर्कसंगत नहीं है।"
अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय परमिट 13 अक्टूबर 2017 तक वैध था, और जब तक वाहन बिहार राज्य में था, तब तक अतिरिक्त अनुमति शुल्क (Authorization Fee) देने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
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राष्ट्रीय परमिट का प्रभाव – यदि राष्ट्रीय परमिट वैध है, तो राज्य परमिट के नवीनीकरण की अनुपस्थिति बीमा दावे को अमान्य नहीं कर सकती।
बीमा कंपनी का दायित्व – बीमा कंपनी को दावा अस्वीकार करने का कोई कानूनी आधार नहीं था।
राज्य उपभोक्ता आयोग का समर्थन – सुप्रीम कोर्ट ने राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को सही माना और राष्ट्रीय आयोग के निर्णय को रद्द कर दिया।
9% ब्याज के साथ भुगतान का आदेश – सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वह 60 दिनों के भीतर दावा राशि का भुगतान करे और इसके साथ 9% वार्षिक ब्याज भी दे।
"बीमित व्यक्ति को वर्षों तक बीमा राशि के लिए प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। इसलिए, बीमा कंपनी को ब्याज सहित दावा राशि चुकाने का निर्देश दिया जाता है।" – सुप्रीम कोर्ट