सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई मनःप्रभावी पदार्थ NDPS अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध है, तो उसके साथ लेन-देन करना NDPS अधिनियम की धारा 8(c) के तहत एक अपराध होगा, भले ही वह पदार्थ NDPS नियमों की अनुसूची-I में शामिल न हो।
यह निर्णय Directorate of Revenue Intelligence बनाम राज कुमार अरोड़ा एवं अन्य मामले में आया, जहां न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ट्रायल कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा आरोप हटाए जाने को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई की।
“यह नहीं कहा जा सकता कि केवल इसलिए कि 'बुप्रेनोर्फिन हाइड्रोक्लोराइड' NDPS अधिनियम की अनुसूची में तो है लेकिन NDPS नियमों की अनुसूची-I में नहीं है, उस पर NDPS अधिनियम की धारा 8 के तहत अपराध नहीं बनता,” सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा।
मामले की पृष्ठभूमि:
मामला तब शुरू हुआ जब 2003 में राज कुमार अरोड़ा और अन्य के परिसरों से बड़ी मात्रा में बुप्रेनोर्फिन हाइड्रोक्लोराइड की शीशियां Directorate of Revenue Intelligence (DRI) ने बरामद कीं। यह पदार्थ NDPS अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध है लेकिन NDPS नियमों की अनुसूची-I में नहीं है।
ट्रायल कोर्ट ने शुरू में NDPS अधिनियम की धाराओं 22 और 29 के तहत आरोप तय किए, लेकिन बाद में आरोपी की याचिका पर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 216 का प्रयोग कर ये आरोप हटा दिए गए। यह फैसला दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उत्तरांचल राज्य बनाम राजेश कुमार गुप्ता (2007) में दिए गए निर्णय के आधार पर लिया गया था, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई पदार्थ NDPS नियमों की अनुसूची-I में नहीं है, तो NDPS अधिनियम लागू नहीं होगा।
इसी के खिलाफ DRI ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुख्य सवाल था:
"क्या NDPS अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध लेकिन NDPS नियमों की अनुसूची-I में शामिल नहीं किए गए किसी मनःप्रभावी पदार्थ का निर्माण, कब्जा, बिक्री, खरीद, परिवहन आदि, धारा 8(c) के अंतर्गत अपराध माना जाएगा?"
इस प्रश्न का उत्तर हाँ में देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा राजेश कुमार गुप्ता फैसले पर की गई निर्भरता गलत थी। कोर्ट ने संजीव वी. देशपांडे बनाम भारत सरकार (2014) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि NDPS अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध सभी पदार्थों पर NDPS अधिनियम लागू होता है, चाहे वे NDPS नियमों की अनुसूची-I में हों या नहीं।
न्यायालय ने यह भी कहा:
“किसी आरोपी को यह साबित करना होगा कि उसने जो पदार्थ लिया था, वह: (a) केवल चिकित्सा या वैज्ञानिक उद्देश्य के लिए था,
(b) NDPS अधिनियम या उसके नियमों के अनुसार लिया गया था, और
(c) उसके पास वैध लाइसेंस, परमिट या प्राधिकरण था।”
इस मामले में ये तीनों शर्तें पूरी नहीं की गई थीं।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि NDPS अधिनियम और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियम दोनों स्वतंत्र रूप से लागू हो सकते हैं और NDPS अधिनियम की अनुसूची को NDPS नियमों की अनुसूची-I से सीमित नहीं किया जा सकता।
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सुप्रीम कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट दोनों ने आरोपी के खिलाफ NDPS अधिनियम के तहत आरोप हटाकर गलत किया। इसलिए अदालत ने DRI द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए NDPS अधिनियम की धाराओं 8(c), 22 और 29 के तहत आरोपों को बहाल कर दिया।
यह स्पष्ट किया गया कि बिना अधिकृत अनुमति के NDPS अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध किसी भी मनःप्रभावी पदार्थ से संबंधित गतिविधियां NDPS अधिनियम के तहत अपराध मानी जाएंगी, भले ही वह पदार्थ नियमों की अनुसूची-I में शामिल न हो।
प्रमुख टिप्पणी:
“NDPS अधिनियम की अनुसूची ही धारा 8(c) के लिए मान्य सूची है। NDPS नियमों की अनुसूची-I में शामिल न होना, अपराध को समाप्त नहीं करता।” — न्यायमूर्ति पारदीवाला
केस का शीर्षक: राजस्व खुफिया निदेशालय बनाम राज कुमार अरोड़ा और अन्य।