राजस्थान हाईकोर्ट ने आज अजमेर कोर्ट में लंबित मानहानि शिकायत की कार्यवाही पर रोक लगा दी है। यह मामला डृष्टि आईएएस के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति के खिलाफ न्यायपालिका पर कथित अपमानजनक टिप्पणियों को लेकर दर्ज की गई थी।
जस्टिस समीर जैन की पीठ ने यह आदेश दिव्यकीर्ति की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें अजमेर कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें मामले में आंशिक संज्ञान लिया गया था।
अजमेर कोर्ट का पिछला आदेश
इससे पहले इसी महीने अजमेर कोर्ट ने कहा था कि दिव्यकीर्ति के खिलाफ "प्राइमा फेसी (प्रारंभिक तौर पर) मजबूत सबूत" हैं, जो दर्शाते हैं कि उन्होंने "छोटे-मोटे प्रचार के लिए दुर्भावना से न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक और व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया।"
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यह मामला एक वीडियो से जुड़ा है, जिसका शीर्षक था:
"आईएएस बनाम जज: कौन ज्यादा ताकतवर है? विकास दिव्यकीर्ति सर द्वारा हिंदी मोटिवेशन।"
इस शिकायत में निम्नलिखित धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया:
बीएनएस की धारा 353(2) (जनता को भ्रमित करना)
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कोर्ट ने मामले को आपराधिक रजिस्टर में दर्ज करने का निर्देश दिया था और दिव्यकीर्ति को अगली सुनवाई पर पेश होने के लिए कहा था।
कोर्ट का अवलोकन:
"प्रारंभिक साक्ष्य के आधार पर यह स्पष्ट है कि आरोपी ने दुर्भावनापूर्ण इरादे से न्यायपालिका, जिसमें न्यायाधीश, वकील और कोर्ट अधिकारी शामिल हैं, के खिलाफ अपमानजनक और व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया। इस वीडियो के माध्यम से न्यायपालिका का मजाक उड़ाया गया है, जिससे इसकी गरिमा, निष्पक्षता और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से आम जनता में न्यायपालिका के प्रति भ्रम, अविश्वास और संदेह पैदा होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
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विकास दिव्यकीर्ति की तरफ से वरिष्ठ वकील वीआर बाजवा और एडवोकेट सुमीर सोढी व पुनीत सिंघवी ने दलील दी कि:
- उनका उस यूट्यूब चैनल से कोई संबंध नहीं है जिसने यह वीडियो अपलोड किया था।
- यह वीडियो किसी तीसरे पक्ष द्वारा बिना अनुमति के एडिट करके डाला गया था।
- शिकायतकर्ता के पास 'लोकस स्टैंडी' (कानूनी अधिकार) नहीं है क्योंकि बीएनएस की धारा 356 के तहत कोई विशिष्ट व्यक्ति या समूह निशाना नहीं बनाया गया था।
शो-कॉज नोटिस के जवाब में दिव्यकीर्ति ने कहा:
"मैं स्पष्ट रूप से कहता हूं कि मेरा उस यूट्यूब चैनल से कोई संबंध, नियंत्रण या संलिप्तता नहीं है जिसने यह वीडियो अपलोड किया। यह वीडियो न तो डृष्टि आईएएस द्वारा प्रकाशित किया गया था और न ही मेरी ओर से किसी ने इसे जारी किया। ऐसा लगता है कि इसे किसी असंबंधित तीसरे पक्ष ने बिना मेरी जानकारी या सहमति के अपलोड कर दिया।"
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शिकायतकर्ता का दावा था कि इस वीडियो में:
- आईएएस अधिकारियों और न्यायाधीशों की तुलना अपमानजनक तरीके से की गई।
- न्यायपालिका और न्यायिक अधिकारियों को बदनाम किया गया।
- कानूनी पेशेवरों की भावनाओं और न्यायपालिका में जनता के विश्वास को ठेस पहुंची।
राजस्थान हाईकोर्ट के रोक आदेश के बाद अजमेर कोर्ट में आगे की कार्यवाही तब तक स्थगित रहेगी जब तक कोई नया आदेश नहीं आता। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और न्यायपालिका के सम्मान के बीच संतुलन को लेकर महत्वपूर्ण है।