राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश में निर्देश दिया कि रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी के खिलाफ धारा 153A IPC के तहत दर्ज एफआईआर में कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। यह मामला रिपब्लिक भारत द्वारा मंदिर विध्वंस की रिपोर्टिंग से संबंधित है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
"सार्वजनिक हित में किसी घटना की रिपोर्टिंग, यदि उसमें भड़काऊ उद्देश्य या प्रभाव नहीं है, तो उसे धारा 153A IPC के तहत अपराध नहीं माना जा सकता।"
धारा 153A IPC उन कृत्यों को दंडित करता है जो विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा या क्षेत्रीय समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देते हैं या सार्वजनिक शांति को भंग करते हैं।
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न्यायमूर्ति फर्जंद अली ने आदेश देते हुए कहा:
"एफआईआर की सामग्री को देखने पर प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कोई ठोस सामग्री नहीं है जो उसे इन अपराधों से जोड़ सके। एफआईआर में कोई ट्रांसक्रिप्ट, वीडियो क्लिपिंग या कोई अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य शामिल नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि याचिकाकर्ता ने ऐसे बयान दिए हैं जो धारा 153A IPC को लागू कर सकें।"
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस धारा के तहत अपराध तभी सिद्ध हो सकता है जब:
- व्यक्ति ने शब्दों (मौखिक या लिखित), संकेतों या दृश्य प्रस्तुतियों के माध्यम से समुदायों के बीच शत्रुता या घृणा को बढ़ावा दिया हो।
- सार्वजनिक शांति को भंग करने वाले कार्य किए गए हों।
इसके बाद कोर्ट ने कहा:
"एफआईआर में न तो स्पष्ट आरोप लगाए गए हैं और न ही कोई दस्तावेजी या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य उपलब्ध कराए गए हैं जो यह दिखा सकें कि याचिकाकर्ता ने शत्रुता या वैमनस्य फैलाने वाले बयान दिए हैं। आरोपों में स्पष्टता की कमी अभियोजन पक्ष के मामले की सच्चाई पर गंभीर संदेह पैदा करती है।"
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कोर्ट ने यह भी कहा कि:
"पर्याप्त साक्ष्य की अनुपस्थिति के बावजूद निरंतर जांच, पत्रकारिता स्वतंत्रता को दबाने के प्रयास को दर्शाती है और याचिकाकर्ता को अनुचित कानूनी प्रक्रियाओं में घसीटने का संकेत देती है।"
इसलिए कोर्ट ने आदेश दिया:
"मुख्य याचिका के निपटारे तक याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।"
गोस्वामी का बचाव और राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप
गोस्वामी के वकील ने तर्क दिया कि:
- वह रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के संपादक हैं, लेकिन रिपब्लिक भारत के संपादकीय निर्णयों में प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं हैं।
- उन्होंने संबंधित समाचार के प्रसारण, बहस या टेलीकाॅस्ट में कोई भूमिका नहीं निभाई।
- यह एफआईआर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित प्रतीत होती है।
- अन्य मीडिया संस्थानों ने भी यही खबर चलाई थी, लेकिन केवल गोस्वामी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई, जिससे जांच की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
उन्होंने आगे कहा:
"यह एफआईआर स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और दबाने का एक प्रयास है, जो लोकतंत्र का एक मौलिक स्तंभ है।"
मामले का शीर्षक: अर्नब गोस्वामी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य