सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान प्रशासन के खिलाफ एक संपत्ति को अवैध रूप से ध्वस्त करने के आरोप में दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया और स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है। याचिका में कहा गया है कि यह विध्वंस सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर 2023 के आदेश का उल्लंघन है, जिसमें किसी भी विध्वंस से पहले आवश्यक प्रक्रिया के पालन का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति गवई ने पूछा कि याचिकाकर्ता ने इस मामले को संबंधित हाईकोर्ट में क्यों नहीं उठाया।
“आप हाईकोर्ट क्यों नहीं जाते? यहां हर याचिका... साल भर बाद भी नहीं लग पाएगी...” – न्यायमूर्ति बी.आर. गवई
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इसके जवाब में अधिवक्ता हेगड़े ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही दो समान याचिकाओं में नोटिस जारी कर चुका है और यह मामला भी गंभीर है, क्योंकि याचिकाकर्ता के पास वैध डिक्री है और नियमितीकरण शुल्क भी अदा किया गया था। इसके बावजूद, एक दिन पहले नोटिस दिए जाने के बावजूद संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया।
“फिर भी कलेक्टर नहीं मानते...कभी-कभी ये कलेक्टर युवा होते हैं, जोश में होते हैं...अगर माननीय न्यायालय सिर्फ उनसे उनके आचरण की व्याख्या मांग लें...” – अधिवक्ता संजय हेगड़े
हेगड़े ने आगे कहा कि अदालत के पूर्व आदेश के बावजूद इस प्रकार के विध्वंस जारी हैं और यह एक "संक्रमण" की तरह फैलता जा रहा है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया कमजोर होती जा रही है।
“यह तो जैसे ‘writ in water’ (पानी में लिखी बात) हो गया है...हम सिर पटकते रह जाते हैं।” – अधिवक्ता संजय हेगड़े
सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों पर गौर करते हुए याचिका पर नोटिस जारी किया और आदेश दिया कि स्थल पर वर्तमान स्थिति को बनाए रखा जाए, विशेष रूप से जब पास का पशु चिकित्सालय कथित रूप से उस भूमि को अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रहा है।
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यह संपत्ति जैसलमेर के एयर फोर्स रोड स्थित पशु चिकित्सालय के पास है, जिसे 22 जनवरी 2025 को ध्वस्त किया गया था, जबकि याचिकाकर्ता के पास न्यायालय द्वारा मान्यता प्राप्त स्वामित्व था और नियमितीकरण राशि भी अदा की जा चुकी थी।
“प्रतिवादीगण ने इस माननीय न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों की पूर्ण उपेक्षा की और संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले कोई पूर्व सूचना या सुनवाई का अवसर नहीं दिया, जबकि संपत्ति का स्वामित्व याचिकाकर्ता के पास था।” – अवमानना याचिका
याचिका के अनुसार, 21 जनवरी 2025 को अधिकारी याचिकाकर्ता की संपत्ति में घुसे और उसे तुरंत खाली करने को कहा। याचिकाकर्ता ने कानूनी दस्तावेज दिखाए और एक नोटिस भी दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर के निर्णय का हवाला था, लेकिन अधिकारियों ने अगले ही दिन सुबह 11 बजे संपत्ति को ध्वस्त कर दिया।
“यह विध्वंस कोई प्रशासनिक भूल नहीं बल्कि एक सोच-समझकर की गई अवहेलना थी... यदि ऐसी अवमानना पर रोक नहीं लगी, तो यह इस माननीय न्यायालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाएगा और कानूनहीनता को बढ़ावा देगा।” – अवमानना याचिका
केस का शीर्षक: पुख राज बनाम प्रताप सिंह और अन्य, CONMT.PET.(C) संख्या 112/2025 में W.P.(C) संख्या 295/2022