सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को नाबालिग लड़की के अपहरण के आरोप से बरी कर दिया। न्यायालय ने पाया कि लड़की अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी और उसकी पत्नी के रूप में रह रही थी।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की, जिसमें अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि आरोपी और उसके परिवार के कुछ सदस्यों ने फरवरी 1994 में एक गांव से एक नाबालिग लड़की का अपहरण किया। जांच के बाद, लड़की आरोपी के साथ देहरादून में पाई गई।
मामले की पृष्ठभूमि
इस घटना के बाद, आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 (अपहरण), धारा 366 (विवाह के लिए महिला का अपहरण) और धारा 376 (बलात्कार) के तहत मामला दर्ज किया गया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी करार दिया और सजा सुनाई।
अपील करने पर, हाईकोर्ट ने धारा 376 IPC के तहत दोषमुक्त कर दिया लेकिन धारा 363 और 366 IPC के तहत दो साल की सजा बरकरार रखी। इसके खिलाफ आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
“गवाह के बयान से स्पष्ट होता है कि अभियुक्त ने लड़की को जबरन नहीं ले गया, बल्कि वह अपनी मर्जी से उसके साथ गई थी।”
सुप्रीम कोर्ट ने लड़की के बयान में विसंगतियों पर ध्यान दिया। लड़की ने पहले दावा किया था कि उसका अपहरण हुआ था, लेकिन जिरह में उसने स्वीकार किया कि वह अपनी मर्जी से गई थी, उसने शादी के कागजात पर हस्ताक्षर किए थे, और बस यात्रा के दौरान भी उसने किसी से मदद नहीं मांगी।
"लड़की स्वयं आरोपी के साथ गई थी, उन्होंने विवाह किया था और वे पति-पत्नी के रूप में रह रहे थे।"
इसके अलावा, अभियोजन पक्ष द्वारा लड़की की उम्र को लेकर प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों में भी विरोधाभास पाया गया। दो अलग-अलग मेडिकल विशेषज्ञों ने लड़की की उम्र 14 और 18 वर्ष के बीच बताई, जिससे आरोपी को संदेह का लाभ मिला।
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सुप्रीम कोर्ट ने S. वर्धराजन बनाम मद्रास राज्य (1964 SCC OnLine SC 36) मामले पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया था कि यदि कोई लड़की, जो लगभग वयस्क हो, अपनी इच्छा से किसी पुरुष के साथ जाती है, तो इसे "अवैध रूप से रखने" के रूप में नहीं देखा जा सकता।
“यदि लड़की समझदार है और स्वेच्छा से किसी पुरुष के साथ जाती है, तो इसे अपहरण नहीं कहा जा सकता।”
अंतिम निर्णय
"यह स्पष्ट है कि लड़की की उम्र 16-18 वर्ष के बीच थी और वह सही-गलत का निर्णय लेने में सक्षम थी।"
सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया और आरोपी को बरी कर दिया।
मामला: तिलकू उर्फ तिलक सिंह बनाम उत्तराखंड राज्य
पक्षकारों की उपस्थिति:
- अपीलकर्ता की ओर से: अनघा एस. देसाई, सत्यजीत ए. देसाई, सचिन पाटिल, प्रीतराज आर. धोख, सिद्धार्थ गौतम, अभिनव के. मुत्यालवार, सचिन सिंह, अनन्या थपलियाल।
- उत्तराखंड राज्य की ओर से: अनुभा धुलिया।