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सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक फैसलों में स्त्री-विरोधी भाषा की निंदा की: महिलाओं की गरिमा का संरक्षण अनिवार्य

13 Feb 2025 8:30 AM - By Shivam Y.

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक फैसलों में स्त्री-विरोधी भाषा की निंदा की: महिलाओं की गरिमा का संरक्षण अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले की कड़ी निंदा की, जिसमें एक महिला को "अवैध पत्नी" और "वफादार मालकिन" कहा गया था। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस प्रकार की अपमानजनक और स्त्री-विरोधी भाषा अनुच्छेद 21 के तहत महिलाओं के सम्मानजनक जीवन के अधिकार का उल्लंघन करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

"हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। किसी महिला को 'अवैध पत्नी' या 'वफादार मालकिन' कहना उसके अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।"

कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी अपमानजनक भाषा केवल महिलाओं के लिए ही क्यों प्रयोग की जाती है, पुरुषों के लिए क्यों नहीं?

कानूनी पृष्ठभूमि: क्या शून्य विवाह (Void Marriage) में भी भरण-पोषण का अधिकार है?

यह फैसला उस संदर्भ में आया जब जस्टिस अभय एस. ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ यह तय कर रही थी कि अगर विवाह शून्य घोषित कर दिया जाए, तो क्या उस महिला को स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony) मिल सकता है?

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कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 11 के तहत शून्य घोषित कर दिया जाता है, तब भी आर्थिक रूप से निर्भर जीवनसाथी को भरण-पोषण मिल सकता है।

"किसी महिला को सिर्फ इसलिए भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसका विवाह शून्य घोषित कर दिया गया है।"

1. न्यायिक फैसलों में अपमानजनक भाषा अस्वीकार्य : सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 2004 के एक फैसले की कड़ी आलोचना की, जिसमें महिला को "अवैध पत्नी" और "वफादार मालकिन" कहा गया था।

"न्यायिक फैसलों में स्त्री-विरोधी भाषा नहीं होनी चाहिए। इस तरह की भाषा संविधान और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।"

2. अनुच्छेद 21 गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार : अनुच्छेद 21 के तहत, हर नागरिक को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी महिला को "अवैध पत्नी" कहना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

"किसी भी महिला को 'अवैध पत्नी' या 'वफादार मालकिन' कहना उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने के समान है, जो अस्वीकार्य है।"

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3. शून्य विवाह में भी भरण-पोषण का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर विवाह को बाद में शून्य घोषित किया जाता है, तो भी महिला को भरण-पोषण का अधिकार मिलेगा।

धारा 25 के तहत, भरण-पोषण का निर्धारण विवाह की वैधता पर नहीं, बल्कि आर्थिक निर्भरता पर आधारित होगा।

महिला को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना कानून का दायित्व है।

"कानून का उद्देश्य आर्थिक रूप से निर्भर महिला को सुरक्षा प्रदान करना है, न कि उसे वंचित करना।"

4. अंतरिम भरण-पोषण (Interim Maintenance) का अधिकार : कोर्ट ने यह भी कहा कि शून्य विवाह के मामलों में भी अंतरिम भरण-पोषण (Section 24 of HMA) दिया जा सकता है।

"भले ही विवाह को शून्य माना जाए, लेकिन यदि महिला आर्थिक रूप से निर्भर है, तो उसे अंतरिम भरण-पोषण मिलना चाहिए।"

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में "हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स" (Handbook on Combating Gender Stereotypes) जारी की, जिसमें:

न्यायिक भाषा में प्रयुक्त लैंगिक भेदभावपूर्ण शब्दों की पहचान की गई।

स्त्री-विरोधी शब्दों का उपयोग रोकने और उनके विकल्प सुझाने की सिफारिश की गई।

न्यायपालिका को लैंगिक संवेदनशील बनाने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए।

न्यायिक भाषा में लैंगिक भेदभाव अस्वीकार्य है।

शून्य विवाह (Void Marriage) में भी भरण-पोषण का अधिकार है।

महिला की आर्थिक निर्भरता को देखते हुए स्थायी भरण-पोषण दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट न्यायिक फैसलों में लैंगिक समानता सुनिश्चित कर रहा है।

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