सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल, 2025 को शिरोमणि अकाली दल (SAD) के पूर्व अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल और पूर्व विधायक बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ जस्टिस (रिटायर्ड) रंजीत सिंह द्वारा दायर की गई अपील को खारिज कर दिया। यह अपील पंजाब में 2015 से 2017 के बीच हुई बेअदबी (sacrilege) की घटनाओं की जांच के लिए गठित जस्टिस रंजीत सिंह आयोग पर की गई विवादित टिप्पणियों के खिलाफ थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि बादल और मजीठिया ने जस्टिस सिंह के प्रति अपना खेद व्यक्त किया है, इसलिए अदालत ने इस मामले को समाप्त कर दिया।
- इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटाने की सलाह दी थी और बादल एवं मजीठिया से खेद व्यक्त करने को कहा था।
- जब यह मामला न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ के समक्ष आया, तो वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत बाली ने अदालत को सूचित किया कि 19 नवंबर 2024 के आदेश का पालन करते हुए प्रतिवादियों ने माफी मांगने का निर्णय लिया है।
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“हालांकि, याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील ने हलफनामे की सामग्री पर आपत्ति जताई, लेकिन इसके अवलोकन से स्पष्ट है कि दिए गए बयान को वापस ले लिया गया है।” — सुप्रीम कोर्ट आदेश
- वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता, जो जस्टिस सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने तर्क दिया कि हलफनामे में केवल यह लिखा गया है, “यदि किसी को ठेस पहुँची हो तो हमें खेद है,” लेकिन इसमें स्पष्ट रूप से आरोप वापस नहीं लिए गए हैं।
- बाली ने जवाब दिया कि आरोपों को पूरी तरह वापस लेना यह दर्शाएगा कि प्रतिवादियों ने आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि गुप्ता चाहें, तो हलफनामे को उनकी सलाह के अनुसार संशोधित किया जा सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामे को देखने के बाद निष्कर्ष निकाला कि बयान वापस ले लिया गया है और याचिका को समाप्त कर दिया गया।
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पृष्ठभूमि: बेअदबी जांच और राजनीतिक विवाद
- जस्टिस रंजीत सिंह ने जून 2015 से मार्च 2017 के बीच पंजाब में हुई बेअदबी की घटनाओं और पुलिस फायरिंग की जांच के लिए गठित आयोग का नेतृत्व किया था।
- आयोग की रिपोर्ट में डेरा सच्चा सौदा और उसके समर्थकों को गुरु ग्रंथ साहिब की चोरी और अपमान का जिम्मेदार ठहराया गया था।
- रिपोर्ट में शिअद संरक्षक प्रकाश सिंह बादल को भी पुलिस द्वारा विरोध प्रदर्शन पर की गई फायरिंग का दोषी ठहराया गया था।
- अगस्त 2018 में सुखबीर सिंह बादल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि जस्टिस रंजीत सिंह की कोई कानूनी योग्यता नहीं थी और उन्होंने आयोग की रिपोर्ट को तैयार करने के दौरान गवाहों के बयानों सहित दस्तावेजों को गढ़ा (fabricate) था।
- कुछ दिनों बाद, बिक्रम मजीठिया सहित अकाली दल के नेताओं ने पंजाब विधानसभा के बाहर प्रदर्शन किया, जिसमें आयोग की रिपोर्ट का मज़ाक उड़ाया गया।
- इन घटनाओं के बाद, जस्टिस सिंह ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में आयोग अधिनियम की धारा 10A के तहत एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई और बादल व मजीठिया पर उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने का आरोप लगाया।
- बादल और मजीठिया ने कोर्ट में तर्क दिया कि आयोग अधिनियम के तहत केवल आयोग के किसी सदस्य द्वारा ही शिकायत दर्ज की जा सकती है।
- उन्होंने यह भी दावा किया कि जब शिकायत दायर की गई, तब आयोग अस्तित्व में नहीं था, इसलिए यह शिकायत अवैध है।
“शिकायत आयोग के विघटन के बाद दायर की गई थी, इसलिए यह कानूनी रूप से मान्य नहीं है।” — प्रतिवादियों की दलील
- 8 नवंबर 2019 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जस्टिस सिंह की शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सुनवाई योग्य नहीं है।
- इसके बाद, जस्टिस सिंह ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और आरोप लगाया कि हाईकोर्ट ने अनावश्यक जल्दबाजी में मामला निपटा दिया, क्योंकि फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश तबादले पर थे।
- जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया को नोटिस जारी किया, जिसके बाद यह कानूनी लड़ाई आगे बढ़ी और अंततः 2 अप्रैल 2025 को समाप्त हुई।
- सुप्रीम कोर्ट ने हलफनामे की समीक्षा करने के बाद पाया कि बादल और मजीठिया ने खेद व्यक्त किया है और अपने बयान वापस ले लिए हैं।
- इस कारण, अदालत ने अपील को खारिज कर दिया और लंबित सभी आवेदनों को समाप्त करने का आदेश दिया।
“इस निर्णय के अनुसार, अपील खारिज की जाती है।” — सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इस फैसले के साथ, जस्टिस रंजीत सिंह और शिरोमणि अकाली दल के नेताओं के बीच वर्षों से चल रही कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई।
केस विवरण: न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रणजीत सिंह बनाम सुखबीर सिंह बादल एवं अन्य | सीआरएलए संख्या 1982/2019