भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है जिसमें जमानत मांगने वाले याचिकाकर्ताओं को अपने आपराधिक इतिहास की जानकारी देना अनिवार्य कर दिया गया है। यह कदम पारदर्शिता सुनिश्चित करने और कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है।
अनिवार्य खुलासा: याचिकाकर्ताओं को अपने विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) के 'सारांश' में स्पष्ट रूप से बताना होगा कि उनका कोई आपराधिक इतिहास है या नहीं। यदि है, तो उन्हें मामलों का विवरण और कार्यवाही की वर्तमान स्थिति बतानी होगी।
खुलासा न करने के परिणाम: यदि बाद में खुलासा गलत या अधूरा पाया जाता है, तो याचिका खारिज कर दी जाएगी।
संस्थागत हित: कोर्ट ने जोर देकर कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा बनाए रखने और दुरुपयोग रोकने के लिए यह कदम आवश्यक है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह फैसला मुन्नेश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले की सुनवाई के दौरान आया, जहां याचिकाकर्ता ने अपने आपराधिक इतिहास, जिसमें आईपीसी की धारा 379 और 411 के तहत पूर्व दोषसिद्धि भी शामिल थी, को छुपा लिया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसे छुपाव न्यायपालिका को गुमराह करते हैं और न्याय में देरी का कारण बनते हैं।
कोर्ट का अवलोकन:
"यदि याचिकाकर्ता ने अपने आपराधिक इतिहास का खुलासा किया होता, तो हमें संदेह है कि क्या इस पर नोटिस जारी किया जाता।"
जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने एक चिंताजनक प्रवृत्ति पर गौर किया कि जमानत या गिरफ्तारी से सुरक्षा मांगने वाले लोग अक्सर अपना आपराधिक इतिहास छुपा लेते हैं। इससे कोर्ट को अधूरी जानकारी के आधार पर नोटिस जारी करना पड़ता है, और बाद में राज्य द्वारा दायर प्रतिवाद से ही सच्चाई सामने आती है।
कोर्ट का कथन:
"हमने अतीत में उदारता दिखाई है, लेकिन अब हमें लगता है कि ऐसी स्थिति को आगे जारी नहीं रखा जा सकता।"
कोर्ट ने अब यह अनिवार्य कर दिया है कि सभी भविष्य की याचिकाओं में निम्नलिखित शामिल होना चाहिए:
- याचिकाकर्ता के आपराधिक इतिहास की स्पष्ट घोषणा।
- किसी भी लंबित या बंद आपराधिक मामले का विवरण, जिसमें कार्यवाही की वर्तमान स्थिति भी शामिल हो।
रजिस्ट्री को यह आदेश सभी तक पहुंचाने का निर्देश दिया गया है ताकि अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
हालांकि कोर्ट ने माना कि नए नियम कुछ लोगों के लिए असुविधाजनक हो सकते हैं, लेकिन उसने कानूनी प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने पर जोर दिया। कुलविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य और शेख भोला बनाम बिहार राज्य जैसे पूर्व के निर्देशों से खुलासा न करने की प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लग पाया था, जिसके चलते सख्त कदम उठाए गए।
कोर्ट का अंतिम टिप्पणी:
"हमने संस्थागत हित में यह निर्देश दिया है ताकि इस कोर्ट के समक्ष की जाने वाली कार्यवाही को हल्के में न लिया जाए और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।"
न्यायालय ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इन निर्देशों को सभी के ध्यान में लाया जाए।
मामला : मुन्नेश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य