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सुप्रीम कोर्ट ने कहा "किसी भी आरोपी के परिजनों को उसकी गलती की सजा नहीं मिलनी चाहिए"

Shivam Y.

सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में चिंता जताई जिसमें एक ड्रग केस को आतंक फंडिंग से जोड़ने पर आरोपी के बच्चों को स्कूल में "आतंकवादी का बच्चा" कहकर परेशान किया गया। कोर्ट ने कहा कि निर्दोष परिजनों को किसी टिप्पणी से नुकसान नहीं होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा "किसी भी आरोपी के परिजनों को उसकी गलती की सजा नहीं मिलनी चाहिए"

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह चिंता सामने आई कि ड्रग केस के एक आरोपी के बच्चों को स्कूल में परेशान किया गया, क्योंकि केस को गलत तरीके से आतंकवाद से जोड़ा गया था। आरोपी के वकील ने कोर्ट को बताया कि बच्चों को "आतंकवादी का बच्चा" कहा गया और उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें स्कूल से वापस लाना पड़ा।

यह मामला हरप्रीत सिंह तलवार @ कबीर तलवार बनाम गुजरात राज्य की जमानत याचिका से जुड़ा है, जिसमें राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का नाम लिया गया, हालांकि एनआईए ने मामले की जांच नहीं की थी।

सीनियर एडवोकेट आर्यमा सुंदरम ने मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने 3000 किलो हेरोइन जब्ती (मूल्य ₹21,000 करोड़) को आतंकवादी गतिविधियों और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जोड़ा। उन्होंने कहा,

“देखिए उन्होंने भारत में क्या किया पहलगाम में, निर्दोष पर्यटकों को गोली मार दी।”

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सुंदरम ने कहा कि इस बयान से आरोपी के परिवार को धमकियां मिलने लगीं और उन्हें सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ा। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि स्पष्ट किया जाए कि इस केस का पहलगाम हमले से कोई संबंध नहीं है।

“ये सब इसलिए हुआ क्योंकि कोर्ट में कहा गया कि यह एनआईए का केस है। जबकि एनआईए ने इसकी जांच नहीं की। सबको समझना चाहिए कि एक टिप्पणी कितने निर्दोषों को प्रभावित कर सकती है,” सुंदरम ने कहा।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने संयमित प्रतिक्रिया दी और भरोसा दिलाया कि मीडिया रिपोर्ट या बाहरी प्रभाव कोर्ट के फैसले को प्रभावित नहीं करेंगे।

“मैं कभी ऐसी खबरें नहीं पढ़ता। मैं खुद को किसी भी बाहरी प्रभाव से प्रभावित नहीं होने देता... इन्हें भूल जाइए। ये सब धारणाएं होती हैं – कभी सही, कभी गलत।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जांच में यह सामने आया है कि ड्रग से मिले पैसे LeT को भेजे गए। लेकिन सुंदरम ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है।

“कोर्ट में एक भी ऐसा कागज दिखाइए जो ये साबित करता हो,” सुंदरम ने कहा।

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न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्थिति को शांत करते हुए कहा,

“यह जमानत का मुद्दा नहीं है... बहस के दौरान कभी-कभी भावनाएं हावी हो जाती हैं – दोनों पक्षों में ऐसा होता है।”

बाद में ASG ऐश्वर्या भाटी ने पेश होकर कहा,

“बच्चों को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा है तो पुलिस इसका ध्यान रखेगी।”

मामले के अंत में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अहम टिप्पणी की –

“कोई भी पारिवारिक सदस्य, चाहे किसी ने कुछ किया हो या नहीं, उसे इस कारण से कष्ट नहीं होना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें। हमें कुछ नहीं कहना है। आप जानते हैं कि क्या करना है।”

केस का शीर्षक: हरप्रीत सिंह तलवार @ कबीर तलवार बनाम गुजरात राज्य, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8878/2024