सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी के खिलाफ दायर दुष्कर्म का मामला खारिज कर दिया है और यह रेखांकित किया है कि संबंध टूटने के बाद दुष्कर्म कानून का बढ़ता दुरुपयोग चिंता का विषय है। अदालत ने कहा कि विवाह की उम्मीद पर बने सहमति वाले यौन संबंध को तब तक दुष्कर्म नहीं माना जा सकता जब तक यह साबित न हो जाए कि शुरू से ही धोखाधड़ी की नीयत थी।
यह फैसला न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने दिया, जिसमें बिस्वज्योति चटर्जी, कलकत्ता के पूर्व सिविल जज, का मामला था। 36 वर्षीय शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि चटर्जी ने विवाह के झूठे वादे पर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। लेकिन अदालत ने पाया कि यह संबंध आपसी सहमति से बना था और दोनों पक्षों की समझदारी पर आधारित था।
“हम पाते हैं कि जब रिश्ते बिगड़ते हैं तो आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। हर सहमति वाले रिश्ते को, जिसमें विवाह की संभावना हो सकती है, विफलता के बाद झूठे विवाह वादे का रंग नहीं दिया जा सकता।” — अदालत ने कहा।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 2015 में दर्ज हुआ था, जब चटर्जी पश्चिम बंगाल के हल्दिया में एसीजेएम के पद पर कार्यरत थे। महिला, जो उस समय तलाक की कार्यवाही से गुजर रही थी, चटर्जी के संपर्क में आई। महिला के अनुसार, चटर्जी ने उसे तलाक के बाद शादी का आश्वासन दिया था और उसके साथ-साथ उसके बेटे की भी जिम्मेदारी लेने की बात कही थी। उन्होंने उसके रहने की व्यवस्था की, बेटे का स्कूल में दाखिला करवाया और नियमित रूप से खर्च के लिए पैसे भेजे।
महिला का आरोप है कि तलाक के बाद चटर्जी ने उससे दूरी बना ली और फोन कॉल्स का जवाब देना बंद कर दिया, जिसके बाद आईपीसी की धारा 376(2)(f), 417 और 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।
हालांकि निचली अदालत और हाईकोर्ट ने चटर्जी की डिस्चार्ज याचिकाएं खारिज कर दी थीं, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि आरोप इतने मजबूत नहीं हैं कि मुकदमा चलाया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि दोनों पक्ष परिपक्व थे—चटर्जी 56 वर्ष के थे और शिकायतकर्ता 36 वर्ष की—और अपने निर्णयों को समझने में सक्षम थे।
“यदि हम शिकायतकर्ता का पक्ष स्वीकार भी कर लें, तो यह स्पष्ट है कि वह जानती थी कि आरोपी अभी भी कानूनी रूप से विवाहित था, भले ही वह अलग रह रहा हो। उसने पूरे विवेक के साथ संबंध में शामिल होने का निर्णय लिया।” — न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा।
अदालत ने बताया कि महिला को आरोपी की वैवाहिक स्थिति की पूरी जानकारी थी और फिर भी वह इस रिश्ते में एक वर्ष से अधिक समय तक शामिल रही। इसलिए 'तथ्य की गलतफहमी' (misconception of fact) का मामला नहीं बनता।
अदालत ने प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य और प्रशांत भारती बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य जैसे पूर्व निर्णयों का उल्लेख किया, जहां कहा गया था कि यदि कोई परिपक्व महिला लंबे समय तक सहमति से संबंध में रही है, तो विवाह नहीं होने पर उसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।
“यह कल्पना करना कठिन है कि कोई महिला बिना स्वेच्छा से किसी व्यक्ति से बार-बार मिलेगी और लंबे समय तक संबंध बनाए रखेगी।” — कोर्ट ने कहा।
इसके अलावा, कोर्ट ने शिकायतकर्ता के बयान में विसंगतियाँ पाईं। उदाहरण के लिए, उसने कहा कि चटर्जी के कहने पर उसने अपने वकील बदले, जबकि रिकॉर्ड से पता चलता है कि जिस वकील को वह मिली थी, वह उसका कॉलेज सीनियर था और उसी ने उसे चटर्जी से मिलवाया था। यह विरोधाभास अभियोजन पक्ष की कहानी को कमजोर करता है।
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दुष्कर्म या धोखाधड़ी का कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं
कोर्ट ने पाया कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह लगे कि शुरुआत में चटर्जी की नीयत धोखाधड़ी करने की थी। इसीलिए आईपीसी की धाराएं 376 (दुष्कर्म), 417 (धोखाधड़ी), और 506 (आपराधिक डराना) लागू नहीं होतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल वादा करना, भावनाओं में आकर निर्णय लेना या रिश्ता खत्म हो जाना आपराधिक अपराध नहीं हैं।
“एक झूठा वादा, कानून की नजर में 'तथ्य' नहीं है। जब तक स्पष्ट प्रमाण न हों कि धोखे या डर से सहमति ली गई, अपराध नहीं बनता।” — अदालत ने कहा।
पीठ ने यह भी बताया कि यह मामला 2014 का है और अब किसी भी पक्ष के लिए यह मुकदमा आगे बढ़ाना मानसिक और सामाजिक रूप से नुकसानदायक होगा। अतः सही यही होगा कि इसे इसी चरण पर समाप्त किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने 23 फरवरी 2024 को कोलकाता हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश को रद्द करते हुए अपील स्वीकार कर ली और बिस्वज्योति चटर्जी के खिलाफ दायर आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया।
“मामले की समग्र स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि दोनों पक्षों के बीच शारीरिक संबंध सहमति से बने थे और किसी प्रकार का दबाव या धोखा नहीं था। अतः न्याय के हित में इन कार्यवाहियों को यहीं समाप्त किया जाना उचित है।” — सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
केस का शीर्षक: बिस्वज्योति चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य।
उपस्थिति:
याचिकाकर्ता(ओं) के लिए श्री पीजूष के. रॉय, वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री काकली रॉय, अधिवक्ता श्री राजन के. चौरसिया, एओआर सुश्री सत्यमा दुबे, अधिवक्ता श्री शरत नांबियार, अधिवक्ता श्री विनायक शर्मा, अधिवक्ता।
प्रतिवादी(ओं) के लिए सुश्री आस्था शर्मा, एओआर श्री सम्राट गोस्वामी, अधिवक्ता श्री सुनंदो राहा, अधिवक्ता श्री एस.के. सायन उद्दीन, अधिवक्ता श्री कुणाल मलिक, एओआर श्री मनीष अवस्थी, अधिवक्ता।
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