भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत पंजीकरण अधिकारी संपत्ति हस्तांतरण दस्तावेजों के पंजीकरण के समय विक्रेता के स्वामित्व का प्रमाण मांगने के लिए अधिकृत नहीं हैं। यह निर्णय देते हुए कोर्ट ने तमिलनाडु पंजीकरण नियमों के नियम 55A(i) को मूल अधिनियम के विपरीत मानते हुए रद्द कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला सिविल अपील नंबर 3954 ऑफ 2025 के तहत सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसमें अपीलकर्ता के. गोपी ने एक विक्रेता जयारमन मुदलियार से संपत्ति खरीदी थी। यह बिक्री विलेख 2 सितंबर 2022 को निष्पादित हुआ, लेकिन उप-पंजीयक ने विक्रेता के स्वामित्व प्रमाण की अनुपस्थिति में पंजीकरण से इनकार कर दिया।
बाद में, जिला पंजीयक ने मामले पर पुनर्विचार के निर्देश दिए, लेकिन उप-पंजीयक ने फिर से पंजीकरण से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि पहले विक्रेता के स्वामित्व का प्रमाण प्रस्तुत करना आवश्यक है। अपीलकर्ता द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय में दायर याचिका और अपील दोनों खारिज कर दी गईं, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
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न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने इस राज्य नियम पर गंभीर आपत्ति जताई और कहा:
“पंजीकरण अधिकारी को निष्पादक के स्वामित्व से कोई मतलब नहीं है। उसके पास यह तय करने का कोई निर्णयकारी अधिकार नहीं है कि निष्पादक को संपत्ति पर कोई स्वामित्व प्राप्त है या नहीं।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पंजीकरण अधिनियम, 1908, पंजीकरण अधिकारी को विक्रेता के स्वामित्व की पुष्टि करने का कोई अधिकार नहीं देता है। अधिकारी का काम केवल प्रक्रियात्मक अनुपालनों और लागू शुल्क की पुष्टि करना है।
नियम 55A(i) के तहत यह अनिवार्य था कि:
“जब तक प्रस्तुतकर्ता विक्रेता का मूल स्वामित्व दस्तावेज़ और हालिया एनकम्ब्रेंस प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं करता, दस्तावेज़ का पंजीकरण नहीं किया जाएगा।”
यदि दस्तावेज़ गुम हो गया हो, तो पुलिस विभाग से गैर-पता प्रमाणपत्र और स्थानीय समाचार पत्र में विज्ञापन प्रस्तुत करना आवश्यक था। यदि संपत्ति पैतृक हो, तो पट्टा या कर रसीद जैसी राजस्व अभिलेखों की मांग की जाती थी।
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की:
“नियम 55A यह निर्धारित करता है कि जब तक निष्पादक के स्वामित्व का प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जाता, दस्तावेज़ का पंजीकरण अस्वीकार कर दिया जाएगा।”
कोर्ट ने इसे अधिनियम की मूल भावना के विरुद्ध माना।
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कोर्ट ने पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 69 के अंतर्गत नियम बनाने की शक्ति की समीक्षा की, जो केवल अधिनियम के अनुरूप नियम बनाने की अनुमति देती है। पीठ ने कहा:
“धारा 69 की किसी भी उपधारा के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो पंजीकरण अधिकारी को स्वामित्व प्रमाण की कमी पर पंजीकरण अस्वीकार करने का अधिकार देता हो।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 22-A और 22-B के तहत केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही दस्तावेज़ों के पंजीकरण से इनकार किया जा सकता है, जैसे सरकारी भूमि, धार्मिक न्यास, अटैच की गई संपत्तियाँ या जाली दस्तावेज़।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया:
“नियम 55A(i) पंजीकरण अधिनियम, 1908 के प्रावधानों के विरुद्ध है और इसलिए यह असंवैधानिक और अमान्य है।”
मामला: ए. गोपी बनाम सब-रजिस्ट्रार व अन्य।
उपस्थिति: अपीलीय के लिए एओआर कुर्रतुलैन; वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. रमन, तमिलनाडु के महाधिवक्ता और राज्य के लिए एओआर सबरीश सुब्रमण्यम