भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ता डॉ. खेम सिंह भाटी द्वारा दायर एक पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें अब अमान्य घोषित की जा चुकी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के तहत राजनीतिक दलों को प्राप्त ₹16,518 करोड़ की राशि को जब्त करने की मांग की गई थी।
यह निर्णय, दिनांक 2 अगस्त 2024 के पूर्व फैसले को दोहराता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन फंड्स की जब्ती इसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आती।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस याचिका पर विचार किया लेकिन पाया कि पुनर्विचार का कोई ठोस आधार नहीं है।
26 मार्च 2025 के आदेश से उद्धरण: "पुनर्विचार याचिका और संलग्न दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, हम आदेश दिनांक 02.08.2024 की समीक्षा करने के लिए कोई पर्याप्त आधार और कारण नहीं पाते।"
यह स्पष्ट करता है कि याचिकाकर्ता द्वारा ऐसा कुछ नया प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे पहले के निर्णय में बदलाव जरूरी लगे।
खुले कोर्ट में मौखिक सुनवाई की मांग को भी अस्वीकार कर दिया गया, हालांकि दाखिल करने में हुई देरी को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया।
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पृष्ठभूमि: इलेक्टोरल बॉन्ड विवाद
2018 में शुरू की गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना ने राजनीतिक दलों को गुमनाम दान स्वीकार करने की सुविधा दी थी। हालांकि, 15 फरवरी 2024 को, Association for Democratic Reforms बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस योजना को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लंघन करार देते हुए अवैध घोषित कर दिया।
इस फैसले ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, कंपनी अधिनियम 2017, और आयकर अधिनियम 1961 के उन प्रावधानों को भी निरस्त कर दिया जो इस योजना का समर्थन करते थे।
इस संवैधानिक निर्णय के बाद, डॉ. भाटी ने अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया और Common Cause बनाम भारत सरकार मामले में अन्य याचिकाओं के साथ एक याचिका दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के अंतर्गत एकत्रित विशाल राशि सिर्फ दान नहीं बल्कि ‘क्विड प्रो क्वो’ लेन-देन थी—जिसमें कॉर्पोरेट दाताओं को उनके दान के बदले में अवैध लाभ दिए गए।
मूल याचिका से उद्धरण: "ये दान वास्तव में ऐसे लेन-देन थे जिनमें राजनीतिक दलों द्वारा दाताओं को अनुचित लाभ दिए गए, जिससे जनहित को क्षति पहुँची।"
डॉ. भाटी ने डेटा के हवाले से बताया कि 23 राजनीतिक दलों ने 1,210 दाताओं से करीब ₹12,516 करोड़ प्राप्त किए, जिनमें से 21 दाताओं ने ₹100 करोड़ से अधिक का योगदान दिया। उन्होंने मांग की कि इस पर कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए।
याचिका में निम्नलिखित मांगें की गई थीं:
- इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के माध्यम से प्राप्त ₹16,518 करोड़ की राशि जब्त की जाए।
- विशेष जांच दल (SIT) द्वारा ‘क्विड प्रो क्वो’ के आरोपों की जांच करवाई जाए।
- सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति बनाई जाए।
- राजनीतिक दलों को दी गई टैक्स छूटों की पुन: जांच की जाए और यदि अनियमितता पाई जाए तो टैक्स, ब्याज और पेनल्टी वसूली जाए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी मांगों को यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिका कल्पनाओं पर आधारित है और न्यायालय जांच एजेंसी का कार्य नहीं कर सकता।
अगस्त 2024 के निर्णय से उद्धरण: "इस न्यायालय को इलेक्टोरल बॉन्ड की खरीद पर स्वतः संज्ञान लेते हुए व्यापक जांच नहीं करनी चाहिए… आपराधिक कदाचार के आरोप विशिष्ट प्रकृति के होते हैं और अनुच्छेद 32 का उपयोग सामान्य प्रक्रिया के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।"
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास दंड प्रक्रिया संहिता के तहत या अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालयों का विकल्प उपलब्ध था। अतः सीधे सुप्रीम कोर्ट आना उचित नहीं था।
26 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का पटाक्षेप करते हुए:
- पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
- मौखिक सुनवाई की याचिका को अस्वीकार कर दिया।
- सभी लंबित आवेदनों को निपटा दिया।
अंतिम आदेश से उद्धरण: "पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है। लंबित आवेदनों, यदि कोई हों, को समाप्त माना जाएगा।"
यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायपालिका विधायी समीक्षा और आपराधिक जांच के बीच की सीमाओं को बनाए रखने के पक्ष में है।
केस विवरण: खेम सिंह भाटी बनाम भारत संघ और अन्य | समीक्षा याचिका (सिविल संख्या /2025 (@ डायरी संख्या 4035/2025)