सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) केवल एक बार किया गया अपराध नहीं है, बल्कि यह एक सतत प्रक्रिया है। 17 मार्च 2025 को, अदालत ने गुजरात के पूर्व आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ धन शोधन के मामले से छुटकारा पाने की मांग की थी।
प्रदीप शर्मा पर आरोप था कि उन्होंने कलेक्टर के रूप में अपने पद का दुरुपयोग कर रिश्वत के माध्यम से अवैध धन अर्जित किया। उन्होंने यह दलील दी कि उनके खिलाफ लगाए गए प्राथमिक अपराध (प्रीडिकेट ऑफेंस) PMLA कानून के लागू होने से पहले के हैं, इसलिए उन पर यह कानून लागू नहीं होता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की इस दलील को सही ठहराया कि धन शोधन एक सतत अपराध है, जो तब तक जारी रहता है जब तक अवैध धन को छुपाया जाता है या इसे किसी वित्तीय प्रणाली में इस्तेमाल किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ [(2023) 12 SCC 1] के मामले का हवाला देते हुए कहा कि धन शोधन का अपराध प्राथमिक अपराध से स्वतंत्र होता है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक अपराध से अर्जित धन को छुपाया जाता है, उपयोग किया जाता है, या वैध रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तब तक यह अपराध जारी रहता है।
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अदालत ने यह भी कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध को तय करने की तिथि वह नहीं होती जब प्राथमिक अपराध किया गया था, बल्कि वह तिथि होती है जब आरोपी उस धन से जुड़ी गतिविधियों में संलिप्त होता है। इस फैसले से PMLA की पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव) लागू होने को लेकर की जा रही दलीलों को भी अस्वीकार कर दिया गया।
प्रवर्तन निदेशालय ने प्रदीप शर्मा के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने का आरोप लगाते हुए कार्यवाही शुरू की। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित दो प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गईं। जांच में पता चला कि उन्होंने अवैध धन के स्रोत को छुपाने के लिए कई वित्तीय चैनलों का उपयोग किया। प्रवर्तन निदेशालय ने यह भी पाया कि उनके पास विदेशों में बैंक खाते थे और वे इन अवैध धनराशियों को कानूनी रूप देने के प्रयास में थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ED द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं कि शर्मा अवैध धन से जुड़े वित्तीय लेन-देन में संलिप्त थे। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी ने कई बार धन को वैध रूप में पेश करने की कोशिश की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में निरंतर शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट ने धन शोधन के गंभीर आर्थिक प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अवैध वित्तीय लेन-देन औपचारिक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की गतिविधियाँ सरकार के राजस्व को नुकसान पहुँचाती हैं और अपराधियों को अनुचित वित्तीय लाभ प्रदान करती हैं।
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इस फैसले में यह भी कहा गया कि न्यायपालिका को आर्थिक अपराधों के मामलों में अधिक सख्त रवैया अपनाना चाहिए ताकि आरोपी कानूनी प्रक्रियाओं में खामियों का फायदा उठाकर बच न सके। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वित्तीय अपराधियों को बिना किसी दंड के छोड़ दिया जाता है, तो इससे आगे चलकर और अधिक आर्थिक अपराधों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता प्रभावित होगी।यह फैसला PMLA को सख्ती से लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि धन शोधन केवल उस समय तक सीमित नहीं होता जब अपराध किया गया था, बल्कि जब तक अवैध धन को उपयोग किया जाता है या इसे वैध रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तब तक यह अपराध बना रहता है।
इसके अलावा, यह फैसला PMLA की पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव) प्रकृति को लेकर किसी भी संदेह को दूर करता है। अदालत ने कहा कि भले ही कोई प्राथमिक अपराध PMLA के लागू होने से पहले किया गया हो, लेकिन अगर मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधियां जारी हैं, तो यह कानून पूरी तरह लागू होगा।
यह फैसला भविष्य के वित्तीय अपराधों पर भी गहरा प्रभाव डालेगा। अब अदालतें मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों को व्यापक दृष्टिकोण से देखेंगी, जिससे आरोपी तकनीकी आधारों पर दायित्व से बच नहीं सकेंगे।
केस का शीर्षक: प्रदीप निरंकारनाथ शर्मा बनाम प्रवर्तन निदेशालय एवं अन्य।