भारत का सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर विचार कर रहा है—क्या वह अनुच्छेद 32 के तहत दायर एक रिट याचिका को स्वीकार कर सकता है ताकि पहले से पुष्टि किए गए मृत्युदंड पर पुनर्विचार किया जा सके, खासकर जब 2022 के मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य निर्णय में सजा के दौरान परिस्थितिजन्य कारकों को ध्यान में रखने के विस्तृत दिशानिर्देश दिए गए हों।
यह याचिका वसंता संपत दुपारे द्वारा दायर की गई है, जिसे चार साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के आरोप में मृत्युदंड दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने 26 नवंबर 2014 को उनकी सजा की पुष्टि की थी। इसके बाद, 3 मई 2017 को उनकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई। उनके दया याचिकाएं 2022 और 2023 में राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा खारिज कर दी गईं, जिसके बाद उन्होंने यह रिट याचिका दायर की।
यह मामला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ के समक्ष सुनवाई में है। याचिकाकर्ता के पक्ष में वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने दलील दी कि न्यायालय को यह तय करना होगा कि क्या मनोज दिशानिर्देश उन मामलों पर भी लागू किए जा सकते हैं जहां पहले ही मृत्युदंड की पुष्टि हो चुकी है।
Read Also:- सुप्रीम कोर्ट ने सिवनी जिला बार एसोसिएशन के सदस्यों से वकीलों की हड़ताल पर मांगी बिना शर्त माफी
मनोज निर्णय, जिसे 10 मई 2022 को न्यायमूर्ति यूयू ललित, एस रविंद्र भट और बेला एम त्रिवेदी द्वारा दिया गया था, इस बात पर बल देता है कि सजा के दौरान परिस्थितिजन्य कारकों का आकलन किया जाना चाहिए और राज्य को आरोपी की मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति की जांच से संबंधित जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए।
महाराष्ट्र के महाधिवक्ता, डॉ. बीरेंद्र साराफ ने याचिका की स्वीकार्यता पर आपत्ति जताई, यह तर्क देते हुए कि अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि एकमात्र उपाय उपचारात्मक याचिका दायर करना है।
साराफ ने त्रिवेणीबेन बनाम गुजरात राज्य (1989) और रूपा अशोक हुरा मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में केवल उपचारात्मक याचिका ही वैध उपाय है। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बाद की घटनाओं को चुनौती दे सकता है, लेकिन वह पहले से निपटाए गए फैसले को वापस लेने की मांग नहीं कर सकता।
शंकरनारायण ने इसके जवाब में दो महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के मामलों का हवाला दिया:
शत्रुघ्न चौहान (2014) – जिसमें कहा गया था कि यदि दया याचिका के निर्णय में देरी होती है, तो मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है।
मोहम्मद आरिफ (2014) – जिसमें यह अनिवार्य किया गया था कि मृत्युदंड के मामलों में पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई खुली अदालत में हो।
उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि दोनों फैसले उन याचिकाओं पर आधारित थे जो पहले ही मृत्युदंड की पुष्टि के बाद दायर की गई थीं। शंकरनारायण ने आगे बताया कि मोहम्मद आरिफ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई है लेकिन मृत्युदंड को अभी तक लागू नहीं किया गया है, तो मामले पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
न्यायालय ने यह भी चिंता जताई कि क्या अनुच्छेद 32 के तहत उस मामले को फिर से खोला जा सकता है जो पहले ही तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किया जा चुका है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने टिप्पणी की:
“महाधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत तर्क हमें भी चिंतित कर रहा है। क्या अनुच्छेद 32 का उपयोग किसी ऐसे मामले को फिर से खोलने के लिए किया जा सकता है जहां मृत्युदंड और दोषसिद्धि की पहले ही पुष्टि हो चुकी हो? क्या याचिकाकर्ता को मूल कार्यवाही में ही आवेदन नहीं करना चाहिए?”
न्यायमूर्ति संजय करोल ने भी यही चिंता व्यक्त करते हुए कहा:
“महाधिवक्ता द्वारा उद्धृत निर्णयों के मद्देनजर, क्या अनुच्छेद 32 के तहत हमारे हाथ बंधे नहीं हैं?”
शंकरनारायण ने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, दिल्ली (प्रोजेक्ट 39A) द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि मनोज निर्णय के बाद सात लोग अभी भी मृत्युदंड पर हैं। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि मनोज के दिशानिर्देशों—विशेष रूप से मानसिक मूल्यांकन और दीर्घकालिक कारावास में कैदियों के व्यवहार की जांच—को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने पर विचार किया जाए।
“हम 17 वर्षों से जेल में हैं, और यह मानसिक मूल्यांकन कुछ ऐसा है जिसका हमें लाभ नहीं मिला है,” उन्होंने तर्क दिया।
अदालत ने मौखिक रूप से सुझाव दिया कि चूंकि इस मामले में अभी तक कोई उपचारात्मक याचिका दायर नहीं की गई है, इसलिए शंकरनारायण को इस विकल्प पर विचार करना चाहिए। सुनवाई अगले गुरुवार को जारी रहेगी, जिससे याचिकाकर्ता को यह साबित करने का अवसर मिलेगा कि अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका स्वीकार्य है।
केस विवरण: वसंता संपत दुपारे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया | डब्ल्यू.पी.(सीआरएल.) संख्या 371/2023