सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स एंड एंटी-सोशल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1986 के तहत दर्ज किए जाने वाले FIR की सख्त जांच अनिवार्य होनी चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को सिर्फ आपराधिक मामले दर्ज होने के कारण नकारा नहीं जा सकता।
12 फरवरी 2025 को दिए गए इस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने ‘जय किशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य’ मामले में FIR को रद्द कर दिया और कहा:
सख्त जांच जरूरी: गैंगस्टर्स एक्ट जैसे कड़े कानूनों के तहत FIR दर्ज करने से पहले उसकी गहन समीक्षा आवश्यक है ताकि इसका अनुचित दुरुपयोग न हो।
अधिकारियों को असीमित शक्ति नहीं: कोर्ट ने कहा कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों को असीमित अधिकार नहीं दिए जा सकते।
संविधान का अनुच्छेद 21 सर्वोपरि: "जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं छीना जा सकता कि किसी व्यक्ति पर आपराधिक मामला दर्ज है।" – सुप्रीम कोर्ट
"संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को केवल इस आधार पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।" – सुप्रीम कोर्ट
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मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में तीन अभियुक्तों – जय किशन, कुलदीप कटारा, और कृष्णा कटारा पर गैंग से जुड़े अपराधों में शामिल होने का आरोप था।
FIR – थाना बमरौली कटारा, आगरा में निम्नलिखित तीन आपराधिक मामलों के आधार पर दर्ज की गई थी:
CC नंबर 119/2022 – IPC की धारा 395 (डकैती), 427 (हानि पहुंचाना), 506 (धमकी) के तहत मामला।
CC नंबर 58/2023 – IPC की धारा 420 (धोखाधड़ी), 406 (अमानत में खयानत), 120B (षड्यंत्र), 504/506 (गाली-गलौज और धमकी) के तहत मामला।
CC नंबर 60/2023 – जमीन विवाद से जुड़ी कथित धोखाधड़ी का मामला।
आरोपियों ने FIR को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यह सिर्फ एक संपत्ति विवाद था, जिसे अपराध का रूप देकर गैंगस्टर्स एक्ट के तहत दर्ज किया गया।
"एक साधारण सिविल विवाद को गलत तरीके से आपराधिक रंग देकर गैंगस्टर्स एक्ट लागू कर दिया गया।" – अभियुक्तों के वकील
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर जवाब में कहा गया:
- अभियुक्त अवैध गतिविधियों में शामिल गिरोह का हिस्सा थे।
- ये लोग धोखाधड़ी, जबरन वसूली और संपत्ति विवादों में गैर-कानूनी तरीके अपनाते थे।
- FIR कमिश्नर ऑफ पुलिस, आगरा से स्वीकृति प्राप्त करने के बाद दर्ज की गई।
"आरोपी अपराधी प्रवृत्ति के हैं और गैंगस्टर एक्ट लगाने का निर्णय उचित है।" – राज्य सरकार का वकील
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने FIR और अन्य दस्तावेजों का गहन अध्ययन करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि:
आरोप मुख्य रूप से संपत्ति विवाद से जुड़े हैं और इनका कोई साबित आपराधिक इतिहास नहीं है।
कोई ठोस साक्ष्य नहीं है कि आरोपी संगठित अपराध में शामिल हैं।
गैंगस्टर्स एक्ट लागू करने का राज्य सरकार का निर्णय असामयिक और अनुचित था।
"FIR में उल्लेखित मामले मुख्य रूप से संपत्ति और पैसों के लेन-देन से संबंधित हैं, जो कि मूलतः सिविल विवाद हैं।" – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने Md. Rahim Ali बनाम असम राज्य (2024) और Mohammad Wajid बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा:
"अगर कोई विशेष कानून नागरिक अधिकारों को सीमित करता है, तो उसकी सख्त व्याख्या आवश्यक है।" – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में:
गैंगस्टर्स एक्ट के तहत दर्ज FIR को रद्द कर दिया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त किया।
स्पष्ट किया कि संपत्ति विवादों से संबंधित लंबित मामलों की स्वतंत्र रूप से सुनवाई जारी रहेगी।
"राज्य सरकार द्वारा गैंगस्टर्स एक्ट लगाने का निर्णय असामयिक और अवांछनीय था।" – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भविष्य में गैंगस्टर्स एक्ट और अन्य कठोर कानूनों के उपयोग के संबंध में महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा। इसके मुख्य प्रभाव होंगे:
- सख्त कानूनों को लागू करने में पारदर्शिता और न्यायसंगत दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक होगा।
- कोर्ट अब FIR की गहन समीक्षा करेगा ताकि कोई भी व्यक्ति अनुचित रूप से फंसाया न जाए।
- संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलेगी।
यह फैसला संविधान प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय की रक्षा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।