मंगलवार सुबह भीड़भाड़ वाले कोर्टरूम में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग (MERC) की कार्यवाही की अनिवार्य ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग मांगने वाली एक PIL को दृढ़ता से खारिज कर दिया। जजों ने लगभग एक-एक बिंदु पर स्पष्ट किया कि यह याचिका कानूनी रूप से टिकती ही नहीं है।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, व्यवसायी-कार्यकर्ता कमलाकर शेनॉय, का तर्क था कि MERC की सुनवाई में पारदर्शिता नहीं है और रिकॉर्डिंग से प्रक्रिया में मौजूद “गड़बड़ियाँ” उजागर होंगी। उन्होंने यह भी दावा किया कि ऐसी रिकॉर्डिंग्स को अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है एक दावा जिसे पीठ ने कानूनी दृष्टि से असंगत बताया।
अदालत की टिप्पणियाँ
मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड ने स्पष्ट किया कि न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्यवाही की रिकॉर्डिंग पहले से ही निषिद्ध है। पीठ ने कहा,
“एक मुकदमेबाज को अदालत की कार्यवाही के किसी भी रिकॉर्ड का उपयोग साक्ष्य के रूप में करने की अनुमति नहीं है। कार्यवाही रिकॉर्ड करने पर साफ रोक है, और उसे अदालत में इस्तेमाल करने पर तो और भी।”
एक मौके पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि शेनॉय ने सर्वोच्च न्यायालय की खुली अदालत संबंधी टिप्पणियों को गलत समझा है। खुली अदालत का उद्देश्य पारदर्शिता है, अनाधिकारिक साक्ष्य बनाना नहीं। जजों ने PIL की मंशा पर भी सवाल उठाए, यह संकेत देते हुए कि इसमें वास्तविक जनहित नहीं है। पीठ ने तीखी टिप्पणी की,
“यह निजी हित की याचिका अधिक लगती है… ऐसी याचिकाएँ न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं।”
अदालत ने इस दावे पर भी भरोसा नहीं किया कि रिकॉर्डिंग से MERC की कार्यवाही की कमियाँ सामने आएँगी। पीठ ने कहा,
“ट्रिब्यूनल की कार्यवाही के वीडियो रिकॉर्ड को साक्ष्य मानना कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है।”
निर्णय
अदालत ने अंततः PIL को खारिज कर दिया और MERC के 2018 के उस प्रस्ताव को बरकरार रखा जिसमें ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग पर रोक लगाई गई थी। मामला यहीं समाप्त हुआ, और पीठ ने दोहराया कि किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल की कार्यवाही रिकॉर्ड या साक्ष्य के रूप में उपयोग नहीं की जा सकती।
Case Title:- Kamlakar Ratnakar Shenoy vs Maharashtra Electricity Regulatory Commission