गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान पतंजलि आयुर्वेद की हालिया च्यवनप्राश विज्ञापन पर कड़ी चर्चा देखने को मिली। अदालत ने पूछा कि क्या अपने उत्पाद की प्रशंसा करते हुए बाकी सभी च्यवनप्राश ब्रांडों को “धोखा” कहना सीमा लांघना है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने डाबर इंडिया की अंतरिम रोक लगाने वाली याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया।
पृष्ठभूमि
च्यवनप्राश बाजार में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली डाबर ने दावा किया कि पतंजलि का 25 सेकंड का विज्ञापन सिर्फ अपने उत्पाद की प्रशंसा नहीं, बल्कि बाकी ब्रांडों की सीधी बदनामी है। विज्ञापन में एक महिला बच्चे को च्यवनप्राश खिलाते हुए कहती है “चलो धोखा खाओ।” इसके बाद बाबा रामदेव कहते हैं “अधिकांश लोग च्यवनप्राश के नाम पर धोखा खा रहे हैं।”
डाबर की ओर से यह तर्क दिया गया कि यह संदेश सीधे तौर पर यह दर्शाता है कि पतंजलि को छोड़कर बाकी सभी च्यवनप्राश उत्पाद धोखाधड़ी या भ्रामक हैं। जबकि च्यवनप्राश आयुर्वेदिक मानकों के अनुसार लाइसेंस प्राप्त उत्पाद है, ऐसे में लाइसेंसधारी कंपनियों को “धोखा” कहना पूरे उद्योग की विश्वसनीयता पर प्रहार है।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति तेजस करिया ने विज्ञापन में प्रयुक्त भाषा पर विशेष ध्यान दिया। सुनवाई के दौरान उन्होंने टिप्पणी की, “साधारण कहना और धोखा कहना एक जैसी बात नहीं है। ‘धोखा’ शब्द अपने आप में गंभीर अर्थ रखता है।”
डाबर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने जोर दिया कि विज्ञापन में न तो किसी सामग्री, न निर्माण विधि, न गुणवत्ता की तुलना की गई है, बल्कि पूरे बाजार को गलत बताया गया है। उन्होंने कहा कि बाजार में सबसे बड़ी हिस्सेदारी डाबर की है, इसलिए हमला स्वाभाविक रूप से उसी पर माना जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि एक योग-गुरु जैसे प्रभावशाली व्यक्ति के द्वारा ऐसा संदेश देना आम जनता के विश्वास को प्रभावित कर सकता है।
उधर, पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव नायर ने कहा कि विज्ञापन केवल यह कहता है कि पतंजलि का उत्पाद श्रेष्ठ है। उन्होंने स्पष्ट किया, “हम यह नहीं कह रहे कि दूसरे उत्पाद नकली हैं। हम सिर्फ कह रहे हैं कि वे कम प्रभावी हैं। यह विज्ञापन में अनुमेय तुलना है।”
लेकिन अदालत ने कहा कि तुलना करना अलग बात है, और प्रतिस्पर्धियों को “धोखा” कहना अलग। “साधारण और धोखा में फ़र्क है। एक आलोचना है, दूसरी आरोप,” न्यायालय ने टिप्पणी की।
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अदालत ने यह भी कहा कि बोलने का तरीका और प्रस्तुति का अंदाज़ उपभोक्ता के मन में आरोप को मजबूत रूप में बैठा सकता है। कोर्ट ने मामले को “सीमा रेखा वाला मामला” बताया, जहाँ साधारण प्रचार और प्रतिष्ठा-क्षति के बीच की रेखा धुंधली हो सकती है।
निर्णय
लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने किसी भी तत्काल रोक का आदेश नहीं दिया। डाबर की अंतरिम रोक की याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया गया। अदालत का आगामी निर्णय यह स्पष्ट कर सकता है कि कंपनियाँ विज्ञापन में किस हद तक प्रतिस्पर्धा करते हुए शब्द इस्तेमाल कर सकती हैं, बिना कानूनी दायरे को लांघे।
Case Title: Patanjali Ayurved Ltd. & Anr. vs. Dabur India Ltd.
Court: Delhi High Court
Judge: Justice Tejas Karia
Issue: Patanjali’s TV commercial uses the word “dhoka”, implying other Chyawanprash products are fraudulent
Dabur’s Claim: The advertisement damages reputation of all licensed Chyawanprash manufacturers; seeks interim injunction to stop the ad
Patanjali’s Defense: Claims it is “permissible puffery”, only promoting its product as superior, not calling others fake










