बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार (7 अक्टूबर, 2025) को एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने भारतीय भरण-पोषण कानून की सामाजिक न्याय भावना को दोहराया। न्यायमूर्ति एम.एम. नेर्लीकर ने गोकुल यशवंत गोपनारायण की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी संगीता गोकुल गोपनारायण को धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत दिए गए ₹4,000 प्रति माह भरण-पोषण भत्ते को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता, जो अकोला के निवासी और सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं, ने यह तर्क दिया कि उनकी शादी अमान्य है क्योंकि पत्नी ने अपने पहले पति का फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था। लेकिन अदालत इस दलील से सहमत नहीं हुई।
पृष्ठभूमि
दोनों की शादी जून 2008 में हुई थी, जब दोनों ही अपने पहले जीवनसाथियों को खो चुके थे। लेकिन शादी के सिर्फ एक महीने बाद ही, संगिता के अनुसार, रिश्ते में दरार आने लगी। उसने आरोप लगाया कि गोकुल और उसका बेटा उसे प्रताड़ित करने लगे, मारपीट की और ₹30,000 की मांग की।
वह मायके लौट आई और बाद में मुरतिजापुर के मजिस्ट्रेट के सामने धारा 125 CrPC के तहत ₹5,000 प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की। मजिस्ट्रेट ने ₹4,000 का आदेश दिया, यह कहते हुए कि संगिता के पास आय का कोई स्रोत नहीं था और पति के पास पर्याप्त साधन थे।
गोकुल ने सत्र न्यायालय में अपील की, जिसे 2018 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता की दलीलें
गोकुल के वकील श्री आर.डी. धांडे ने दलील दी कि संगिता की शादी धारा 11, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत अमान्य (void) है क्योंकि उसका पहला पति, हरीश शिंदे, अभी जीवित है। उन्होंने आरोप लगाया कि संगिता ने हरीश की मृत्यु का फर्जी प्रमाणपत्र तैयार करवाया और उसी के आधार पर विवाह किया।
"जब पहली शादी जीवित है, तो दूसरी शादी अपने आप शून्य हो जाती है," उन्होंने कहा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों पर भरोसा किया, जैसे यमुनाबाई आदि बनाम आनंदराव आदि और सविताबेन भाटिया बनाम गुजरात राज्य, यह साबित करने के लिए कि अमान्य विवाह में पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिलता।
उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने संगिता के खिलाफ दो आपराधिक मुकदमे दर्ज किए हैं - फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी के आरोपों पर - जो अब भी लंबित हैं।
प्रतिवादी का पक्ष
संगीता की ओर से अधिवक्ता ए.बी. मिर्जा ने इन आरोपों को “जिम्मेदारी से भागने की चाल” बताया। उन्होंने कहा कि पति पिछले 10 से 15 वर्षों से कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया कि पहला पति जीवित है या प्रमाणपत्र फर्जी है।
“याचिकाकर्ता का मकसद सच नहीं, बल्कि उत्पीड़न है,” मिर्जा ने अदालत को बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 के अनुसार, जो व्यक्ति किसी तथ्य का दावा करता है, उसे ही उसका प्रमाण देना होता है। इसलिए प्रमाण का भार गोकुल पर था।
अदालत के अवलोकन
न्यायमूर्ति नेर्लीकर ने विवाह रजिस्टर, गवाहों के बयान और विवादित मृत्यु प्रमाणपत्र का गहन परीक्षण किया। उन्होंने कहा कि भले ही यह प्रमाणपत्र फर्जी साबित हो जाए, फिर भी पति ने यह साबित नहीं किया कि संगिता का पहला विवाह अब भी अस्तित्व में है।
"याचिकाकर्ता इस बात को सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहे हैं कि पहला विवाह अभी भी अस्तित्व में है। केवल यह कहना कि मृत्यु प्रमाणपत्र फर्जी है, यह साबित नहीं करता कि पहला पति जीवित है," अदालत ने कहा।
न्यायालय ने स्म्ट. एन. उषा रानी बनाम मूडुदुला श्रीनिवास (2025) में सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि धारा 125 CrPC में “पत्नी” की परिभाषा का दायरा सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से व्यापक होना चाहिए।
न्यायमूर्ति नेर्लीकर ने टिप्पणी की-
"धारा 125 CrPC सामाजिक न्याय का प्रावधान है... अदालतों को इसका ऐसा अर्थ निकालना चाहिए जिससे महिलाओं और बच्चों का संरक्षण हो, न कि उनका अधिकार छीना जाए।"
उन्होंने आगे कहा कि भरण-पोषण के कानून कानूनी तकनीकीताओं के लिए नहीं बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि कोई महिला परित्यक्त होकर भुखमरी का शिकार न बने।
निर्णय
अंत में, अदालत ने मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालय के आदेशों को सही ठहराते हुए कहा कि संगिता को भरण-पोषण का अधिकार है और गोकुल की याचिका निराधार है।
“उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, याचिका में कोई दम नहीं है,” न्यायाधीश ने कहा और नियम को समाप्त कर दिया।
इसके साथ ही, बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि धारा 125 CrPC के तहत सामाजिक न्याय की भावना को कानूनी पेचीदगियों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए-खासकर जब किसी महिला के जीवनयापन का सवाल हो।
Case Title: Gokul Yashwant Gopnarayan vs. Sangeeta Gokul Gopnarayan
Case Number: Criminal Writ Petition No. 942 of 2018
Counsel for Petitioner: Mr. R. D. Dhande
Counsel for Respondent: Mr. A. B. Mirza
Date of Judgment Reserved: 30 September 2025
Date of Judgment Pronounced: 7 October 2025