28 अक्टूबर 2025 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने लगभग नौ साल से चले आ रहे विवाद में याचिकाकर्ता एम.एल. यादव को पहली बार राहत की ठंडी सांस दी। अदालत में मौजूद लोग भी समझ रहे थे कि यह फैसला आसान नहीं था। जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की बेंच ने कहा कि यादव द्वारा दिया गया स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) वापसी आवेदन समयसीमा के भीतर दायर किया गया था, भले ही रेलवे ने उसी दिन उनका वीआरएस स्वीकार कर लिया था।
पृष्ठभूमि
विवाद फरवरी 2016 में शुरू हुआ, जब यादव ने निजी कारणों का हवाला देते हुए वीआरएस का आवेदन दिया था। एक महीने बाद उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि उनकी सेवानिवृत्ति पर विचार 7वें वेतन आयोग लागू होने के बाद ही किया जाए। लेकिन हालात तेजी से बदले, और 12 मई 2016 को उन्होंने वीआरएस वापस लेने का आवेदन दे दिया-सेवानिवृत्ति की निर्धारित तिथि से कुछ ही दिन पहले।
रेलवे ने, हालांकि, 16 मई को उनका वीआरएस स्वीकार कर लिया और उसी दिन सेवानिवृत्ति आदेश भी जारी कर दिया। फरवरी 2025 में CAT ने रेलवे के पक्ष में फैसला किया और कहा कि यादव ने वीआरएस वापसी का कोई “वैध कारण” नहीं बताया। इसी निर्णय के खिलाफ वे हाईकोर्ट पहुंचे।
अदालत की टिप्पणियाँ
अपने विस्तृत आदेश में हाईकोर्ट ने रेलवे सेवाएँ (पेंशन) नियम, 1993 के नियम 67 पर ध्यान केंद्रित किया-विशेष रूप से उस प्रावधान पर जिसमें कर्मचारी को अपनी सेवानिवृत्ति की प्रस्तावित तिथि से पहले वीआरएस वापस लेने की अनुमति है।
बेंच ने कहा, “इस मामले में सेवानिवृत्ति की प्रस्तावित तिथि 17 मई 2016 थी। याचिकाकर्ता का वापसी आवेदन 16 मई को प्राप्त हुआ, जो निश्चित रूप से समयसीमा के भीतर था।” अदालत ने बालराम गुप्ता और जे.एन. श्रीवास्तव जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया, जिनमें यह सिद्धांत स्थापित है कि कर्मचारी तब तक वीआरएस वापस ले सकता है जब तक सेवानिवृत्ति प्रभावी न हो जाए।
एक महत्वपूर्ण टिप्पणी तब आई जब अदालत ने कहा कि रेलवे के पास वापसी आवेदन को ठुकराने का कोई उचित कारण नहीं था। बेंच ने लिखा, “प्रशासनिक व्यवस्था में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं दिखाया गया, इसलिए अस्वीकृति उचित नहीं थी।”
लेकिन मामला इतना सरल भी नहीं था। वीआरएस स्वीकार होने के बाद यादव ने एटीवीएम (ऑटोमैटिक टिकट वेंडिंग मशीन) फ़ैसिलिटेटर बनने के लिए आवेदन किया था-यह पद केवल सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए होता है। रेलवे ने इसे सबूत बताया कि यादव ने स्वयं अपनी सेवानिवृत्ति स्वीकार कर ली थी। अदालत ने आंशिक रूप से इस दलील को माना और कहा, “याचिकाकर्ता एक ही समय में दो विपरीत लाभ नहीं ले सकता।”
निर्णय
अंततः हाईकोर्ट ने CAT के आदेश और रेलवे द्वारा दिया गया अस्वीकृति आदेश दोनों रद्द कर दिए। अदालत ने घोषित किया कि यादव की वीआरएस आवेदन-वापसी मान्य और समय पर थी, इसलिए उनकी सेवानिवृत्ति प्रभावी नहीं हुई थी।
लेकिन एक महत्वपूर्ण सीमांकन भी रखा गया-उन्हें कोई वित्तीय या सेवा संबंधी लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि उन्होंने स्वयं सेवानिवृत्त कर्मचारी की स्थिति का लाभ उठाते हुए एटीवीएम फ़ैसिलिटेटर का कार्य किया था।
फैसले का अंतिम शब्द साफ था: यादव सेवानिवृत्त नहीं माने जाएंगे, लेकिन उन्हें न वेतन मिलेगा, न बकाया सेवा लाभ।
Case Title: M.L. Yadav vs. Union of India & Others
Case No.: WPS No. 2078 of 2025
Case Type: Writ Petition (Service – Voluntary Retirement Withdrawal)
Decision Date: 28 October 2025