दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग से यौन उत्पीड़न के आरोपी सुमित सिंह की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की, कहा- "गंभीर और विश्वसनीय आरोप"

By Shivam Y. • October 23, 2025

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुमित सिंह की अग्रिम ज़मानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि आरोप गंभीर हैं और चिकित्सा साक्ष्यों से समर्थित हैं। - सुमित सिंह बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) और अन्य

दिल्ली हाईकोर्ट ने दक्षिण दिल्ली के संगम विहार क्षेत्र में 17 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी सुमित सिंह की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह मामला भारतीय दंड संहिता (BNS, 2023) और बाल यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम (POCSO Act, 2012) के तहत दर्ज हुआ था। न्यायमूर्ति डॉ. स्वर्णा कांत शर्मा की एकल पीठ ने 17 अक्टूबर 2025 को सुनवाई करते हुए कहा कि आरोप गंभीर हैं और चिकित्सकीय प्रमाणों से prima facie पुष्ट होते हैं।

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पृष्ठभूमि

एफआईआर संख्या 302/2025 के अनुसार, शिकायतकर्ता 17 वर्षीय लड़की ने बताया कि 26 जून 2025 को वह अपने पड़ोसी सुमित सिंह से मिलने गई थी, जिसे वह पिछले तीन-चार वर्षों से जानती थी। सुमित उसे अपने मित्र निकिल के घर गोविंदपुरी ले गया, जहां उसने कथित रूप से उसकी पिटाई की और कई बार जबरन यौन संबंध बनाए।

घटना के बाद पीड़िता भयभीत अवस्था में तुगलकाबाद स्थित अपनी सहेली के घर चली गई और डर के कारण कुछ नहीं बताया। अगले दिन 27 जून को उसे गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन पर पुलिस ने ढूंढ निकाला, क्योंकि उसके माता-पिता ने पहले ही गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

शुरुआत में लड़की ने मेडिकल जांच से इनकार कर दिया और पुलिस को सच्चाई नहीं बताई। लेकिन 5 जुलाई को आरोपी की मां और पीड़िता के बीच हुए विवाद के बाद उसने पूरी घटना अपनी मां को बताई, जिसके बाद यह एफआईआर दर्ज की गई।

दोनों पक्षों की दलीलें

आवेदक की ओर से अधिवक्ता हितेश ठाकुर ने कहा कि यह एफआईआर दोनों परिवारों के बीच आपसी विवाद का नतीजा है और इसकी रिपोर्ट में 11 दिन की देरी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि घटना की तारीख को लेकर विरोधाभास है - कहीं 25 जून, तो कहीं 26 जून लिखा है।

उन्होंने दलील दी कि सुमित सिंह का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और वह “साफ-सुथरा नागरिक” है।

वहीं, राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) नरेश कुमार चाहर ने अग्रिम जमानत का विरोध किया। उन्होंने कहा कि “आरोप अत्यंत गंभीर हैं” और जांच अभी प्रारंभिक अवस्था में है। यदि आरोपी को जमानत दी जाती है, तो वह पीड़िता को धमका सकता है या सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है।

अदालत के अवलोकन

न्यायमूर्ति स्वर्णा कांत शर्मा ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि पीड़िता का बयान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 183 के तहत दर्ज किया गया है और यह महत्वपूर्ण साक्ष्य है।

न्यायालय ने कहा -

"यह स्पष्ट है कि नाबालिग पीड़िता भय और शर्म के कारण तुरंत घटना का खुलासा नहीं कर सकी। ऐसी स्थिति में उसका मौन रहना स्वाभाविक है।"

एम्स (AIIMS) में हुए मेडिकल परीक्षण में पीड़िता के बाएँ आंख के नीचे चोट का निशान, जननांगों पर हल्की खरोंच और टूटी हुई हाइमन (hymen) की पुष्टि हुई - जो उसके बयानों से मेल खाती है।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

"भले ही आरोपी और पीड़िता आपस में मित्र रहे हों, इसका अर्थ यह नहीं कि आरोपी को बलात्कार या बंधक बनाने का अधिकार मिल जाता है।"

अदालत ने यह भी नोट किया कि आरोपी अब तक जांच में शामिल नहीं हुआ है, जबकि उसकी अग्रिम जमानत याचिकाएं पहले चार बार या तो वापस ली गईं या खारिज की गईं।

न्यायालय का निर्णय

अदालत ने पाया कि आरोप गंभीर हैं और मेडिकल रिपोर्ट सहित उपलब्ध सामग्री से प्रथम दृष्टया पुष्ट होते हैं।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा-

“वर्तमान परिस्थितियों और रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर यह अदालत मानती है कि अग्रिम जमानत देने का कोई औचित्य नहीं बनता।”

इस प्रकार, सुमित सिंह की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई। साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अवलोकन केवल जमानत चरण तक सीमित है और मुकदमे के परिणाम को प्रभावित नहीं करेगा।

Case Title: Sumit Singh vs. State (NCT of Delhi) and Another

Case Number: Anticipatory Bail Application No. 4008/2025

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