सैमसंग नकली सामान मामले में अधिवक्ता आयुक्तों पर हमले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया

By Vivek G. • August 25, 2025

दिल्ली हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया जब कोलकाता में नकली सैमसंग उत्पादों पर छापे के दौरान अधिवक्ता आयुक्तों पर हमला हुआ। अदालत ने कहा कि ऐसे हमले न्याय को कमजोर करते हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट ने Court on Its Own Motion v. M/s Obsession Naaz & Ors. में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह मामला उस समय सामने आया जब अदालत द्वारा नियुक्त अधिवक्ता आयुक्तों पर कोलकाता में सैमसंग के नकली उत्पाद बेचने वालों पर छापे के दौरान हिंसक हमला हुआ। यह मामला सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा दायर दीवानी कार्यवाही से उत्पन्न हुआ था, जो बाद में आपराधिक अवमानना कार्यवाही में बदल गया।

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मामले की पृष्ठभूमि

सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स ने CS(OS) No.4024/2014 दायर कर आरोप लगाया कि कोलकाता के खिद्दरपुर बाजार की कई दुकानें खुलेआम नकली सैमसंग मोबाइल फोन और एक्सेसरीज़ बेच रही हैं। 23 दिसंबर 2014 को दिल्ली हाई कोर्ट ने 15 पहचाने गए विक्रेताओं को नकली सामान बेचने से रोक दिया। अदालत ने 11 अधिवक्ता आयुक्तों को दुकानों का निरीक्षण करने और नकली सामान जब्त करने के लिए नियुक्त किया।

13 जनवरी 2015 को जब अधिवक्ता आयुक्त पुलिस की मदद से बाजार पहुंचे, तो उन पर भीड़ ने बेरहमी से हमला किया। अधिवक्ता श्रवण सहरी को गंभीर चोटें आईं, जिनमें दांत टूटना भी शामिल था। अन्य आयुक्त जैसे अंकुर मित्तल और सिद्धार्थ खताना को भी पीटा गया। उनके साथ गए पुलिसकर्मी भी घायल हो गए।

“अधिवक्ता आयुक्तों पर हमला न्याय के प्रशासन में खुली दखलअंदाजी है।” — अदालत का अवलोकन

हमले के बाद कोलकाता पुलिस ने IPC की धाराओं 147, 148, 149, 353, 333, 379, और 34 के तहत FIR संख्या 13/2015 दर्ज की। कई आरोपियों जैसे अनवर हुसैन, लालचंद खान, नियाज़ अहमद, मोहम्मद आसिफ, मोहम्मद जसीम और मोहम्मद सालाउद्दीन को गिरफ्तार किया गया। 2016 में कई प्रतिवादियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया।

इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस (SCN) जारी कर प्रतिवादियों से पूछा कि क्यों उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू न की जाए। कई प्रतिवादियों ने अपना अलिबी पेश किया, निर्दोष होने का दावा किया या बिना शर्त माफी मांगी।

न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने अवमानना अधिकार क्षेत्र के उद्देश्य पर जोर देते हुए कहा:

“अदालतों का सम्मान और अधिकार एक आम नागरिक के लिए सबसे बड़ी गारंटी है, और यदि न्यायपालिका को कमजोर किया जाता है तो समाज का लोकतांत्रिक ढांचा प्रभावित होगा।”

अदालत ने Ram Kishan v. Tarun Bajaj और Jhareswar Prasad Paul v. Tarak Nath Ganguly जैसे फैसलों का हवाला दिया और दोहराया कि जानबूझकर अवज्ञा और न्याय में बाधा डालना अवमानना की श्रेणी में आता है।

केस का शीर्षक: कोर्ट ऑन इट्स इट्स मोशन बनाम मेसर्स ऑब्सेशन नाज़ एवं अन्य

केस संख्या: CONT.CAS.(CRL) 3/2015, CRL.M.A. 50201/2018, CRL.M.A. 14374/2025

निर्णय की तिथि: 22 अगस्त 2025

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