मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश उपाध्याय के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए साफ कहा कि आरोप "झूठे, मनगढ़ंत और दुर्भावनापूर्ण" हैं। जस्टिस विशाल मिश्रा ने 8 सितंबर 2025 को आदेश सुनाते हुए पुलिस को निर्देश दिया कि शिकायतकर्ता के खिलाफ झूठे मुकदमों के लिए कार्रवाई की जाए।
पृष्ठभूमि
जून 2025 में रीवा के सिविल लाइंस थाने में दर्ज एफआईआर में अधिवक्ता पर एक नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था। लेकिन यह पहला मामला नहीं था। कोर्ट में रखे गए रिकॉर्ड से साफ हुआ कि शिकायतकर्ता पहले भी अपने रिश्तेदारों, एक अध्यापक, मकान मालिक और यहां तक कि इसी अधिवक्ता पर कई बार यौन शोषण के झूठे आरोप लगा चुकी है। सभी मामलों में पुलिस ने आरोपों को खारिज कर दिया था।
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सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल खरे ने दलील दी कि शिकायतकर्ता ने पहले उपाध्याय को वकील के तौर पर काम पर रखा था। लेकिन जब उन्होंने उसका केस आगे लड़ने से मना किया और एनओसी दे दी, तो उसने दबाव बनाने और ब्लैकमेल करने के लिए यह झूठे केस दर्ज कराए।
"ऐसे मामलों को जारी रहने देना अदालत के वरिष्ठ वकील को अनावश्यक रूप से परेशान करना है," उन्होंने कहा।
अदालत की टिप्पणियां
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि रिकॉर्ड देखने पर यह साफ है कि शिकायतकर्ता अपनी ही बेटियों का नाम लेकर कई फर्जी मामले दर्ज कराती रही है। आदेश में लिखा गया:
"स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता झूठी और मनगढ़ंत शिकायतें दर्ज कराने की आदत में है।"
कोर्ट ने कई विरोधाभासों की ओर इशारा किया। एक मामले में महिला ने दावा किया कि अधिवक्ता ने हाईकोर्ट परिसर में ही बच्ची से दुष्कर्म किया, जिसे सीसीटीवी फुटेज और यात्रा के सबूतों ने गलत साबित कर दिया। दूसरे मामले में उसने कहा कि आधी रात वकील उसके घर घुस आया, लेकिन उसके पति और पड़ोसियों ने यह बयान दिया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट के भजनलाल केस और नीहारिका इन्फ्रास्ट्रक्चर केस का हवाला देते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा कि जब मुकदमे साफ तौर पर कानून के दुरुपयोग हों, तो अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए।
"वरिष्ठ अधिवक्ता के खिलाफ ऐसी कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा," आदेश में कहा गया।
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निर्णय
हाईकोर्ट ने एफआईआर क्रमांक 255/2025 और उससे जुड़ी सभी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। अदालत ने आगे बढ़ते हुए पॉक्सो एक्ट की धारा 22 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराएं 240 और 248 का हवाला देकर रीवा पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया कि शिकायतकर्ता पर झूठी शिकायतें दर्ज करने के लिए तुरंत कार्रवाई की जाए।
साथ ही कोर्ट ने चेतावनी दी कि भविष्य में यदि महिला फिर ऐसी कोई शिकायत करती है तो पुलिस पहले प्रारंभिक जांच करेगी, तभी कोई कदम उठाया जाएगा। जस्टिस मिश्रा ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा के लिए बने कानून का दुरुपयोग न केवल निर्दोष लोगों की छवि नष्ट करता है बल्कि असली पीड़ितों के मामलों को भी कमजोर करता है।
इसी के साथ याचिका स्वीकार कर ली गई और कार्यवाही समाप्त हुई।