एक अनोखे मोड़ में, राजस्थान हाईकोर्ट ने एक छोटे शहर की व्यवसायी महिला को राहत दी जो अपने ही जीएसटी पोर्टल से कंसल्टेंट विवाद के चलते बाहर कर दी गई थीं। जोधपुर पीठ के न्यायमूर्ति दिनेश मेहता और न्यायमूर्ति संगीता शर्मा ने कहा कि जब तक महिला को पोर्टल की पहुँच नहीं मिली, तब तक आदेश अपलोड होने की तारीख से विलंब नहीं गिना जा सकता।
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पृष्ठभूमि
यह मामला चूरू की साहिल स्टील्स नामक फर्म से जुड़ा है, जिसे श्रीमती रुबिना चलाती हैं। उन्होंने जीएसटी पंजीकरण के लिए एक टैक्स कंसल्टेंट को नियुक्त किया था। मुसीबत तब शुरू हुई जब कंसल्टेंट ने जीएसटी रिटर्न दाखिल करना बंद कर दिया और लॉगिन आईडी-पासवर्ड देने से इनकार कर दिया।
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रुबिना का कहना था कि बार-बार मांगने के बावजूद कंसल्टेंट ने सहयोग नहीं किया। मजबूर होकर उन्होंने 5 फरवरी 2024 को कमर्शियल टैक्स अधिकारी को आवेदन देकर अपने जीएसटी अकाउंट में दर्ज मोबाइल नंबर और ईमेल बदलने की गुजारिश की। मगर यह अनुरोध एक साल से भी ज्यादा देर बाद, 17 मार्च 2025 को मंजूर हुआ।
इस बीच विभाग ने 25 जुलाई 2024 को मूल्यांकन आदेश पारित कर उसे जीएसटी पोर्टल पर अपलोड कर दिया। रुबिना को इसकी भनक भी नहीं लगी क्योंकि वह लॉगिन नहीं कर पा रही थीं। जब 5 मार्च 2025 को अचानक उनका बैंक खाता अटैच कर दिया गया, तभी उन्हें पता चला और उन्होंने 25 मार्च 2025 को अपील दायर कर दी।
अदालत की टिप्पणियां
अपील प्राधिकरण ने पहले उनकी अपील यह कहकर खारिज कर दी थी कि 90 दिन की सीमा 25 जुलाई 2024 से शुरू हो चुकी थी - यानी जिस दिन आदेश पोर्टल पर अपलोड हुआ।
लेकिन हाईकोर्ट इस तर्क से सहमत नहीं हुआ। पीठ ने कहा,
"धारा 107(1) के तहत ‘उस व्यक्ति को संप्रेषण’ शब्द का अपना महत्व है।"
अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर किसी व्यक्ति को पोर्टल की पहुँच ही नहीं थी तो सिर्फ आदेश अपलोड कर देना संप्रेषण नहीं माना जा सकता।
न्यायाधीशों ने कहा कि रुबिना को 17 मार्च 2025 से पहले आदेश की जानकारी मिलना असंभव था क्योंकि उसी दिन उनकी लॉगिन डिटेल बदली गई थी। अदालत ने कहा,
"जब तक याचिकाकर्ता का मोबाइल नंबर और ईमेल बदले नहीं गए थे, वह पोर्टल तक पहुंच नहीं रख सकती थीं… उन्हें विलंब का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"
उन्होंने विभाग को लेकर एक दिलचस्प टिप्पणी भी की:
"अगर विभाग अटैचमेंट आदेश ईमेल से भेज सकता है, तो मूल्यांकन आदेश भी ईमेल से क्यों नहीं भेज सकता ताकि तारीख को लेकर किसी तरह का भ्रम ही न रहे?"
निर्णय
हाईकोर्ट ने याचिका मंजूर करते हुए 22 अप्रैल 2025 का अपीलीय प्राधिकरण का आदेश रद्द कर दिया और अपील को बहाल कर दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि प्राधिकरण उन्हें सुनवाई का मौका दे और धारा 107(6) के तहत जरूरी राशि जमा होने पर मामले को मेरिट पर तय करे।
इसके साथ ही पीठ ने हल्के लेकिन सख्त अंदाज़ में कहा कि तकनीकी औपचारिकताएँ न्याय की राह में बाधा नहीं बननी चाहिए, खासकर तब जब करदाता को जानकारी ही नहीं दी गई हो और गलती उसकी न हो।
केस का शीर्षक: मेसर्स साहिल स्टील्स बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य
केस संख्या: D.B. Civil Writ Petition No. 11326/2025