छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, बिलासपुर ने 16 सितंबर 2025 को उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें युवा विधि स्नातकों, अभियोजकों और सरकारी विधिक अधिकारियों ने सिविल जज (कनिष्ठ श्रेणी) भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति माँगी थी। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि ये याचिकाएँ ''भ्रमित, गलत दिशा में और गुण- दोष से रहित'' हैं और अदालत ने विधि द्वारा तय पात्रता शर्तों में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।
पृष्ठभूमि
विवाद 5 जुलाई 2024 की अधिसूचना से शुरू हुआ था, जब छत्तीसगढ़ अधीनस्थ न्यायिक सेवा (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम, 2006 में संशोधन किया गया। इस संशोधन के अनुसार उम्मीदवार के पास न केवल विधि की डिग्री होनी चाहिए बल्कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत अधिवक्ता के रूप में नामांकन भी होना अनिवार्य था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इससे अभियोजन अधिकारियों और कुछ विधि स्नातकों को अनुचित रूप से बाहर कर दिया गया।
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लोक सेवा आयोग की 23 दिसंबर 2024 की विज्ञप्ति ने भी यही शर्त दोहराई, जिससे अभ्यर्थियों में असंतोष और बढ़ गया। जब कई अभ्यर्थी 21 सितंबर 2025 को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा के लिए अपना प्रवेश पत्र डाउनलोड नहीं कर पाए तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
अदालत की टिप्पणियाँ
याचिकाकर्ताओं के वकीलों का तर्क था कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करता है और निजी वकालत करने वाले अधिवक्ताओं व सरकारी अभियोजकों में भेदभाव करता है। उन्होंने दीपक अग्रवाल बनाम केशव कौशिक तथा हाल का ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2025) जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया।
वहीं राज्य और छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) का कहना था कि पात्रता नियम विधायी अधिकार क्षेत्र में बनाए गए हैं और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप हैं।
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पीठ ने, पूर्ववर्ती वाद विनीता यादव बनाम राज्य छत्तीसगढ़ सहित कई मामलों का हवाला देते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय ने मई 2025 में स्पष्ट रूप से यह अनिवार्य किया था कि सिविल जज पद के अभ्यर्थियों के पास कम से कम तीन साल का प्रैक्टिस अनुभव होना चाहिए। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि भर्ती प्रक्रिया उन्हीं नियमों के तहत चलेगी जो विज्ञापन की तारीख को प्रभावी थे, न कि बाद में हुए संशोधनों पर।
''याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को अपनी सुविधा के हिसाब से नहीं पढ़ सकते,''
अदालत ने कहा और जोड़ा कि जुलाई 2024 का संशोधन, जिसमें अधिवक्ता नामांकन अनिवार्य किया गया था, भर्ती विज्ञापन जारी होने के समय वैध था। न्यायाधीशों ने साफ किया कि केवल नीति संबंधी असहमति के आधार पर वैधानिक प्रावधानों को निरस्त नहीं किया जा सकता।
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निर्णय
न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ताओं की कोशिश ''न्यायिक सेवा में पिछला दरवाजा खोलने'' जैसी है। अत: तीनों रिट याचिकाएँ (डब्ल्यूपीएस सं. 11089, 11093 और 11096/2025) बिना किसी लागत के खारिज कर दी गईं। इसके साथ ही सिविल जज परीक्षा का रास्ता साफ हो गया है और याचिकाकर्ताओं को हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली।
केस शीर्षक : हिमालय रवि एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य
केस संख्या : सं. 11089/2025, डब्ल्यूपीएस सं. 11093/2025, डब्ल्यूपीएस सं. 11096/2025