दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैमिली कोर्ट का वह आदेश बरकरार रखा जिसमें दो नाबालिग बच्चों की अंतरिम अभिरक्षा मां को दी गई थी। गौतम मेहरा और सोनिया मेहरा के बीच लम्बे समय तक चले और भावनात्मक रूप से तनावपूर्ण इस विवाद में अदालत ने साफ किया कि “बच्चों का कल्याण हर अन्य विचार से ऊपर है, चाहे वह माता-पिता के अधिकार ही क्यों न हों।”
अदालत के भीतर माहौल गंभीर लेकिन संयत था। निर्णय सुनाते समय दोनों माता-पिता चुपचाप बैठे रहे जबकि पीठ ने बेहद संतुलित ढंग से अपना आदेश सुनाया।
पृष्ठभूमि
दंपत्ति ने 2009 में शादी की थी और अपने दो बच्चों-एक किशोरी बेटी और एक छोटे बेटे-के साथ दक्षिण दिल्ली के घर में रहते थे। 2023 में वैवाहिक मतभेद सामने आने लगे। हालात बिगड़ने पर गौतम मेहरा दोनों बच्चों को लेकर गुरुग्राम स्थित एक अपार्टमेंट में रहने चले गए।
यही कदम लंबी कानूनी लड़ाई का कारण बना। मां ने आरोप लगाया कि पिता ने बच्चों को उसकी अनुमति के बिना ले गए, जबकि पिता का कहना था कि उन्होंने घर के “तनावपूर्ण माहौल” से बच्चों को बचाने के लिए ऐसा किया। बाद में फैमिली कोर्ट ने बच्चों को मां के सुपुर्द करने और पिता को संरचित मुलाक़ात के अधिकार देने का आदेश दिया-जिसे अब हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया है।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान जजों ने दोनों बच्चों से कई बार बातचीत की, जिसमें चेंबर में निजी मुलाक़ातें भी शामिल थीं। इन मुलाक़ातों ने अदालत की राय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सुनवाई के दौरान एक मौके पर पीठ ने कहा, “बच्चे ट्रॉफी नहीं हैं जिन्हें कोई माता-पिता जीत लें। उनकी भावनात्मक सुरक्षा, आराम और अपनापन किसी भी कीमत पर प्रभावित नहीं होना चाहिए।”
अदालत ने यह भी नोट किया कि पिता बच्चों को दुबई ले गए जबकि अगले ही दिन मां को अदालत द्वारा निर्धारित रात्रि-भ्रमण का अधिकार दिया गया था। इस पर अदालत ने चिंता व्यक्त करते हुए इसे “प्रथमदृष्टया आदेशों की अवहेलना” कहा। जजों ने remarked किया कि ऐसे कदम बच्चों की स्थिरता को हिला सकते हैं, खासकर तब जब परिवार पहले से टूटन से गुजर रहा हो।
बड़ी बेटी की लगातार और स्वैच्छिक इच्छा-कि वह मां के साथ रहना चाहती है-भी अदालत के लिए महत्वपूर्ण तथ्य रहा। पीठ ने कहा कि “वह परिपक्व और स्पष्टवक्ता दिखी,” और उसकी इच्छा “प्रभावित या गढ़ी हुई नहीं थी।”
जहाँ तक पिता द्वारा लगाए गए आरोपों का सवाल है-जैसे मां के अनुचित व्यवहार के दावे या बच्चों को प्रभावित करने के आरोप-अदालत को इनमें कोई विश्वसनीय आधार नहीं मिला। अदालत ने स्पष्ट किया कि अभिरक्षा जैसे संवेदनशील मामलों में “अप्रमाणित स्क्रीनशॉट या कयासों” के आधार पर निर्णय नहीं लिए जा सकते।
पीठ ने यह भी दोहराया कि भौतिक सुविधाएँ भावनात्मक सुरक्षा की जगह नहीं ले सकतीं। साधारण भाषा में-बड़ा घर या महँगी चीज़ें माँ के स्नेह और लगातार देखभाल के मुकाबले निर्णायक नहीं हो सकतीं।
निर्णय
अपने अंतिम आदेश में हाईकोर्ट ने पिता की अपील को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। बच्चे मां की देखभाल में रहेंगे और पिता को दी गई मुलाक़ात व्यवस्था पहले की तरह जारी रहेगी।
अदालत ने मौजूदा व्यवस्था को आठ सप्ताह तक जारी रखने की अनुमति दी, ताकि दोनों पक्ष चाहें तो फैमिली कोर्ट से मुलाक़ात या संक्रमण से जुड़ी किसी भी व्यावहारिक समस्या पर संशोधन मांग सकें।
साथ ही, निचली अदालत को सलाह दी गई कि “बच्चों के अनुकूलन की निगरानी करे” और भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत रखने के लिए भी कदम उठाए, क्योंकि फिलहाल दोनों अलग-अलग माता-पिता के साथ रह रहे हैं।
इस तरह मामला इस चरण पर समाप्त हुआ, लेकिन पीठ ने दोनों अभिभावकों को सौम्यता से याद दिलाया कि बच्चों का वास्तविक हित केवल सहयोग से सुरक्षित हो सकता है, मुक़दमेबाज़ी से नहीं।
Case Title: Gautam Mehra v. Sonia Mehra
Case No.: MAT.APP.(F.C.) 255/2024
Case Type: Matrimonial Appeal (Custody & Visitation)
Court: Delhi High Court
Bench: Justice Anil Kshetrapal & Justice Harish Vaidyanathan Shankar
Decision Date: 18 November 2025