एक महत्वपूर्ण फैसले में, जिसका असर देशभर के दहेज उत्पीड़न मामलों पर पड़ सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने एक पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए एफआईआर को रद्द करने के मद्यप्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को पलट दिया और प्रकरण को बहाल कर दिया। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि अदालतें 498A जैसे मामलों में FIR रद्द करते समय सबूतों का मूल्यांकन ऐसे नहीं कर सकतीं जैसे ट्रायल चल रहा हो।
पृष्ठभूमि
मामला मुस्कान का है, जिसकी शादी नवंबर 2020 में रतलाम के इशान खान से मुस्लिम रीति से हुई थी। दंपति का एक बेटा भी है। मुस्कान का आरोप है कि शादी के कुछ महीनों बाद ही उसके पति और ससुरालवालों ने दहेज को लेकर ताने देने शुरू कर दिए। उसने कहा कि मानसिक उत्पीड़न धीरे-धीरे बढ़कर गालियों, बंदिशों और खाने-पानी तक सीमित कर दिया गया।
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एफआईआर के अनुसार दो तारीखें विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं:
- 22 जुलाई 2021: जब ननदोई ने कथित रूप से थप्पड़ मारा और दहेज लाने को कहा।
- 27 नवंबर 2022: जब पति ने कथित रूप से कहा कि मेडिकल पढ़ाई आगे बढ़ाने के लिए ₹50 लाख घर से लाए, नहीं तो वह उसे नहीं रखेगा।
इसके बाद मुस्कान को बेटा सहित घर से निकाल दिया गया।
मुस्कान ने जनवरी 2023 में महिला हेल्पलाइन में शिकायत दी थी और जनवरी 2024 में औपचारिक एफआईआर दर्ज हुई (धारा 498A IPC और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धाराएं 3 और 4)।
लेकिन मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी, यह कहकर कि पहले की शिकायत में उन दो विशिष्ट घटनाओं का ज़िक्र नहीं था, इसलिए वे “बाद में गढ़ी गई” लगती हैं।
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न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट इस reasoning से असहमत हुआ। न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट ने अपनी सीमाओं से बाहर जाकर यह तय करने की कोशिश की कि आरोप विश्वसनीय हैं या नहीं — जो कि FIR रद्द करने के स्तर पर नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा:
“हाई कोर्ट ने आरोपों की विश्वसनीयता की जांच शुरू कर दी, जो कि क्वैशिंग के चरण में स्वीकार्य नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि:
“FIR कोई विश्वकोश नहीं होती। हर तथ्य पहले ही दस्तावेज़ में विस्तार से होना आवश्यक नहीं है।”
अदालत ने यह भी कहा कि दहेज या वैवाहिक उत्पीड़न मामलों में महिलाएँ अक्सर दबाव, परिवारिक परिस्थितियों और डर की वजह से घटनाएँ तुरंत पूरी तरह नहीं बता पातीं। इससे शिकायत झूठी नहीं हो जाती।
पीठ ने हाई कोर्ट की प्रक्रिया को “मिनी ट्रायल” जैसा बताया, जो कानून के विरुद्ध है और भजन लाल तथा नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर के फैसलों में पहले ही निषिद्ध किया जा चुका है।
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निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए मामला बहाल कर दिया और कहा कि अब ट्रायल कोर्ट साक्ष्यों का परीक्षण स्वतंत्र रूप से करेगा।
अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपियों को सभी कानूनी बचाव का अधिकार ट्रायल में प्राप्त रहेगा, लेकिन जांच और कार्यवाही को प्रारंभिक स्तर पर रोका नहीं जा सकता।
अपील स्वीकार की गई और मामला ट्रायल कोर्ट को भेजा गया।
Case Title: Muskan vs. Ishaan Khan (Sataniya) & Others
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Sanjay Karol & Justice Prashant Kumar Mishra
Case Type: Criminal Appeal (arising out of SLP (Crl.) No. 1531 of 2025)
Citation: 2025 INSC 1287
Date of Judgment: 06 November 2025










