दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा: व्हाट्सएप और ईमेल के ज़रिए हुआ संवाद वैध मध्यस्थता समझौता माना जा सकता है

By Shivam Y. • July 4, 2025

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि व्हाट्सएप और ईमेल जैसे डिजिटल माध्यमों से हुआ संवाद, यदि समझौते के इरादे को दर्शाता हो, तो वह वैध मध्यस्थता समझौते की श्रेणी में आ सकता है। कोर्ट ने क्षेत्रीय अधिकार-क्षेत्र और अंतरिम राहत पर भी स्पष्ट फैसला दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने Belvedere Resources DMCC बनाम OCL Iron and Steel Ltd. & Ors. मामले में यह निर्णय दिया कि व्हाट्सएप और ईमेल जैसे डिजिटल माध्यमों से हुआ संवाद भी एक वैध मध्यस्थता समझौते की श्रेणी में आ सकता है, यदि उसमें अनुबंध के सभी आवश्यक बिंदुओं पर सहमति स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो।

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न्यायमूर्ति जस्मीत सिंह ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 7(4)(b) का हवाला देते हुए कहा कि समझौता केवल दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर होने से ही वैध नहीं माना जाता, बल्कि यदि पक्षों के बीच किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से संवाद हुआ हो और वह समझौते का रिकॉर्ड प्रस्तुत करता हो, तो उसे भी वैध समझा जा सकता है।

"उपरोक्त पत्राचार में कोई संदेह नहीं रहता कि ईमेल और व्हाट्सएप संवाद के जरिए मध्यस्थता समझौता किया गया।" — दिल्ली हाईकोर्ट

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यह मामला UAE स्थित Belvedere Resources DMCC द्वारा दाखिल की गई धारा 9 की याचिका से संबंधित था, जिसमें उन्होंने OCL Iron and Steel Ltd., Oriental Iron Casting Ltd., और Aron Auto Ltd. के खिलाफ ₹23.34 करोड़ (USD 2.77 मिलियन) की अंतरिम सुरक्षा की मांग की थी।

याचिकाकर्ता के अनुसार, सितंबर 2022 में S.M. Niryat Pvt. Ltd. (SMN) के एक प्रतिनिधि ने व्हाट्सएप के माध्यम से कोयला खरीद का प्रस्ताव मांगा। उसी दिन SMN ने प्रस्ताव स्वीकार किया। आगे चलकर Standard Coal Trading Agreement (ScoTA) ईमेल के जरिए भेजा गया जिसमें सभी महत्वपूर्ण शर्तें जैसे कि शिपमेंट, भुगतान, विवाद निपटान आदि शामिल थीं।

पक्षकारों के बीच कई बार व्हाट्सएप और ईमेल पर पुष्टि हुई, जिसमें वेसेल नॉमिनेशन और अनुबंध संशोधन जैसे बिंदुओं पर सहमति दी गई। हालांकि, SMN ने अंतिम हस्ताक्षरित अनुबंध और अग्रिम भुगतान नहीं भेजा और बाद में “डील रद्द” करने का ईमेल भेजा। इसके बाद याचिकाकर्ता ने जून 2024 में SIAC के अंतर्गत मध्यस्थता आरंभ की।

"यह आवश्यक नहीं है कि एक पूर्ण अनुबंध अस्तित्व में हो, तभी वैध मध्यस्थता समझौता माना जाए।" — न्यायमूर्ति जस्मीत सिंह

हालांकि, कोर्ट ने क्षेत्रीय अधिकार-क्षेत्र न होने के आधार पर अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि केवल दिल्ली में शाखा कार्यालय का होना दिल्ली को अधिकार क्षेत्र नहीं देता, जब तक कि उस शाखा का लेनदेन से सीधा संबंध न हो।

"केवल शाखा कार्यालय का अस्तित्व, जो लेनदेन से जुड़ा नहीं है, दिल्ली को अधिकार नहीं देता कि वह इस याचिका पर विचार करे।" — दिल्ली हाईकोर्ट

कोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता का दावा “अनिर्धारित हानि (unliquidated damages)” पर आधारित है, जो तब तक ‘ऋण’ नहीं माना जा सकता जब तक कि उसे अदालत द्वारा तय न कर दिया जाए। कोई भी जब्ती या सुरक्षा आदेश केवल इसी आधार पर नहीं दिए जा सकते कि प्रतिवादी ने ऋण चुकाने में विलंब किया हो।

"नुकसान केवल अदालत के आदेश से देय होते हैं, न कि याचिकाकर्ता द्वारा अनुमानित राशि के आधार पर।" — न्यायमूर्ति जस्मीत सिंह

अंततः, कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया, हालांकि यह स्पष्ट किया कि यह निर्णय केवल धारा 9 की याचिका तक सीमित है और SIAC मध्यस्थता कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगा।

याचिकाकर्ता के वकील: श्री गौहर मिर्ज़ा, सुश्री शिवी चोला

प्रतिवादियों के वकील: श्री कृष्णराज ठेकर (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री आनंद सुकुमार, श्री एस. सुकुमारन, श्री भूपेश कुमार, सुश्री रुचे आनंद

शीर्षक: बेल्वेडियर रिसोर्सेज डीएमसीसी बनाम ओसीएल आयरन एंड स्टील लिमिटेड और अन्य

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