नई दिल्ली, 17 सितंबर – लगभग थके हुए से दिख रहे इस पुराने मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) के बीच 30 साल पुराने ज़मीन के झगड़े पर फिलहाल रोक लगा दी। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने रिलायंस को अंतरिम राहत देते हुए गुजरात के जामनगर की अतिरिक्त वरिष्ठ सिविल जज अदालत में चल रही सभी कार्यवाही स्थगित कर दी।
“पीठ ने कहा, ‘मामला जटिल कानूनी सवालों से जुड़ा है और निचली अदालत में आगे बढ़ने से पहले इस पर विचार जरूरी है,’” सुनवाई में मौजूद एक वकील ने बताया।
पृष्ठभूमि
यह विवाद 1990 के दशक की शुरुआत का है, जब गुजरात सरकार ने बीपीसीएल को कच्चे तेल का टर्मिनल बनाने के लिए मोटी खावड़ी में लगभग 349 हेक्टेयर ज़मीन आवंटित की थी। बीपीसीएल का आरोप है कि रिलायंस पेट्रोलियम- जो बाद में आरआईएल में विलय हो गया- ने धीरे-धीरे इस ज़मीन के एक हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया, कथित तौर पर सीमा दीवार बढ़ाकर और निर्माण कर।
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बीपीसीएल ने 1995 में स्थायी निषेधाज्ञा (injunction) की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया। इसके बाद कार्यवाही में लगातार देरी होती रही: सर्वे अधूरा, कई बार स्थगन, और वर्षों तक रिलायंस की तरफ से कोई लिखित जवाब नहीं। 2012 में जाकर मुद्दों का निर्धारण हुआ। बीपीसीएल ने समय-समय पर अपनी याचिका में संशोधन किए- 2013 में कथित अतिक्रमण हटाने के लिए, 2017 में नए सर्वे नंबर जोड़ने के लिए, और हाल ही में जून 2024 में विवादित हिस्से पर मालिकाना हक और मुआवज़े की मांग के लिए।
अदालत की टिप्पणियां
रिलायंस ने गुजरात हाई कोर्ट के 9 मई 2025 के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें बीपीसीएल को नए दावे जोड़ने की अनुमति दी गई थी, भले ही मुकदमा पुराना हो। हाई कोर्ट का मानना था कि क्योंकि मूल केस 2002 के संशोधन से पहले दायर हुआ था, इसलिए बीपीसीएल किसी भी समय अपनी याचिका में बदलाव कर सकता है।
मंगलवार की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मित्तल ने कहा कि मुकदमे की लंबी अवधि खुद चिंता का विषय है। उन्होंने टिप्पणी की, “यह ऐसा मामला है जिसमें घड़ी को इतनी आसानी से पीछे नहीं घुमाया जा सकता,” और संकेत दिया कि सुप्रीम कोर्ट के पुनर्विचार से पहले निचली अदालत की कार्यवाही जारी रहने से अपूरणीय असर पड़ सकता है।
निर्णय
रिलायंस की अपील पर कार्रवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जामनगर ट्रायल पर रोक लगा दी, जब तक यह तय न हो कि बीपीसीएल का हालिया संशोधन सही था या नहीं। इससे एक ऐसा विवाद फिर से थम गया है, जो कई सरकारों और कॉर्पोरेट बदलावों से भी लंबा चला है। अब तक कोई नई गवाही दर्ज नहीं होगी और स्थानीय अदालत को सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेश का इंतज़ार करना होगा।
मामला: रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड