छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में मंगलवार को न्यायमूर्ति राधाकिशन अग्रवाल ने नरेंद्र सिंह राजपूत को रूपराम के खिलाफ लंबित बरी अपील वापस लेने की अनुमति दे दी। यह मामला 1881 के परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत चेक बाउंस विवाद से जुड़ा था।
पृष्ठभूमि
इस मामले का लंबा इतिहास रहा है। जुलाई 2012 में दुर्ग की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी अदालत ने रूपराम को चेक अनादरण से जुड़े आरोपों से बरी कर दिया था। इस फैसले से असंतुष्ट होकर राजपूत ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 378(4) के अंतर्गत उच्च न्यायालय का रुख किया, जो शिकायतकर्ताओं को अनुमति लेकर बरी के खिलाफ अपील करने का अधिकार देती है। नवंबर 2012 में अनुमति दे दी गई थी और अपील करीब 13 वर्षों तक लंबित रही।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मि. सेलस्टियम फाइनेंशियल बनाम ए. ज्ञानसेकरन (2025 INSC 804) में महत्वपूर्ण फैसला दिया। इसमें स्पष्ट किया गया कि चेक बाउंस मामलों में शिकायतकर्ता भी CrPC के तहत ''पीड़ित'' माने जाएंगे, और उन्हें बरी के खिलाफ धारा 372 की प्रोविजो के तहत अपील करने का अधिकार होगा, वह भी बिना उच्च न्यायालय से विशेष अनुमति लिए।
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न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान, राजपूत के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय पर जोर दिया। उनका तर्क था कि इस फैसले के आलोक में अपीलकर्ता को पीड़ित के रूप में सत्र न्यायालय में नई अपील करने का अवसर मिलना चाहिए, बजाय इसके कि वह धारा 378(4) के पुराने, सीमित रास्ते पर आगे बढ़े।
''चेक अनादरण मामले में शिकायतकर्ता को वास्तविक आर्थिक नुकसान होता है, इसलिए वह किसी भी मायने में पीड़ित से कम नहीं है। उसे अपील का अधिकार नकारा नहीं जा सकता,'' पीठ ने दलीलों पर विचार करते हुए कहा।
दिलचस्प बात यह रही कि प्रतिवादी रूपराम की ओर से वकील ने इस अनुरोध का विरोध नहीं किया। इस असहमति के अभाव में अदालत का ध्यान सीधे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की लागू योग्यता पर केंद्रित रहा।
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निर्णय
दोनों पक्षों को सुनने के बाद, न्यायमूर्ति अग्रवाल ने राजपूत को वर्तमान उच्च न्यायालय की अपील वापस लेने की अनुमति दी। आदेश में उन्हें यह स्वतंत्रता दी गई कि वे इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के 60 दिनों के भीतर संबंधित सत्र न्यायाधीश के समक्ष नई अपील दायर कर सकते हैं। महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने स्पष्ट किया कि सत्र न्यायाधीश ऐसी अपील को समय- सीमा के आधार पर खारिज न करें, बल्कि मामले के गुण- दोष पर विचार करें।
पीठ ने अंत में रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि राजपूत को बरी के फैसले की प्रमाणित प्रति वापस दी जाए, बशर्ते उसकी सत्यापित फोटोकॉपी रिकॉर्ड पर रखी जाए, और ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड वापस भेज दिया जाए। इसी के साथ 13 साल पुरानी अपील औपचारिक रूप से निपट गई।
वाद का शीर्षक : नरेंद्र सिंह राजपूत बनाम रूपराम
वाद संख्या : अपराध अपील क्रमांक 222/2012